2075 परमा एकादशी व्रत
2075 मध्ये परमा एकादशी कधी आहे?
10
मे, 2075
(शुक्रवार)
परमा एकादशी व्रत मुहूर्त्त New Delhi, India
परमा एकादशी उपवास सोडण्याची वेळ :
07:10:22 ते 08:14:58 मे, 11
कालावधी :
1 तास 4 मिनिटे
हरी वासरा समाप्ती क्षण :
07:10:22 ला मे, 11
अधिक मास या पुरुषोत्तम मास में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी परमा एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती है। यह एकादशी परम दुर्लभ सिद्धियों की दाता होने के कारण ही परमा के नाम से प्रसिद्ध है। यह धन की दाता और सुख-ऐश्वर्य की जननी परम पावन है एवं दुख-दरिद्रता का दमन करने वाली है। इस एकादशी में स्वर्ण दान, विद्या दान, अन्न दान, भूमि दान और गौदान करना चाहिए।
परमा एकादशी व्रत पूजा विधि
इस एकादशी व्रत की विधि कठिन है। इस व्रत में पांच दिनों तक पंचरात्रि व्रत किया जाता है। जिसमें एकादशी से अमावस्या तक जल का त्याग किया जाता है। केवल भगवत चरणामृत लिया जाता है। इस पंचरात्र का भारी पुण्य और फल होता है। परमा एकादशी व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:
1. इस दिन प्रात:काल स्नान के उपरांत भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर हाथ में जल व फल लेकर संकल्प करना चाहिए। इसके पश्चात भगवान का पूजन करना चाहिए।
2. इसके बाद 5 दिनों तक श्री विष्णु का स्मरण करते हुए व्रत का पालन करना चाहिए।
3. पांचवें दिन ब्राह्मण को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा सहित विदा करने के बाद व्रती को स्वयं भोजन करना चाहिए।
परमा एकादशी व्रत कथा
धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को परमा एकादशी व्रत का महत्व और कथा का वर्णन सुनाया।
प्राचीन काल में काम्पिल्य नगर में सुमेधा नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री का नाम पवित्रा था। वह परम सती और साध्वी थी। वे दरिद्रता और निर्धनता में जीवन निर्वाह करते हुए भी परम धार्मिक थे और अतिथि सेवा में तत्पर रहते थे। एक दिन गरीबी से दुखी होकर ब्राह्मण ने परदेश जाने का विचार किया, किंतु उसकी पत्नी ने कहा- ‘’स्वामी धन और संतान पूर्वजन्म के दान से ही प्राप्त होते हैं, अत: आप इसके लिए चिंता ना करें।’’
एक दिन महर्षि कौडिन्य उनके घर आए। ब्राह्मण दंपति ने तन-मन से उनकी सेवा की। महर्षि ने उनकी दशा देखकर उन्हें परमा एकादशी का व्रत करने को कहा। उन्होंने कहा- ‘’दरिद्रता को दूर करने का सुगम उपाय यही है कि, तुम दोनों मिलकर अधिक मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत तथा रात्रि जागरण करो। इस एकादशी के व्रत से यक्षराज कुबेर धनाधीश बना है, हरिशचंद्र राजा हुआ है।’’
ऐसा कहकर मुनि चले गए और सुमेधा ने पत्नी सहित व्रत किया। प्रात: काल एक राजकुमार घोड़े पर चढ़कर आया और उसने सुमेधा को सर्व साधन, संपन्न, सर्व सुख समृद्ध कर एक अच्छा घर रहने को दिया। इसके बाद उनके समस्त दुख दर्द दूर हो गए।