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2048 पापनकुश एकादशी व्रत

2048 मध्ये पापनकुश एकादशी कधी आहे?

17

ऑक्टोबर, 2048

(शनिवार)

पापनकुश एकादशी

पापनकुश एकादशी व्रत मुहूर्त New Delhi, India

पापनकुश एकादशी उपवास सोडण्याची वेळ :
06:31:13 ते 08:40:47 ऑक्टोबर, 18
कालावधी :
2 तास 9 मिनिटे
हरी वासरा समाप्ती क्षण :
06:31:13 ला ऑक्टोबर, 18

पाप रूपी हाथी को व्रत के पुण्य रूपी अंकुश से बेधने के कारण ही इसका नाम पापकुंशा एकादशी हुआ। इस दिन मौन रहकर भगवद् स्मरण तथा भजन-कीर्तन करने का विधान है। इस प्रकार भगवान की आराधना करने से मन शुद्ध होता है और मनुष्य में सदगुणों का समावेश होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को कठिन तपस्या के बराबर पुण्य मिलता है।

पापाकुंशा एकादशी व्रत की पूजा विधि

इस व्रत के प्रभाव से अनेकों अश्वमेघ और सूर्य यज्ञ करने के समान फल की प्राप्ति होती है। इसलिए पापाकुंशा एकादशी व्रत का बहुत महत्व है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:

1.  इस व्रत के नियमों का पालन एक दिन पूर्व यानि दशमी तिथि से ही करना चाहिए। दशमी पर सात तरह के अनाज, इनमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए, क्योंकि इन सातों धान्य की पूजा एकादशी के दिन की जाती है।
2.  एकादशी तिथि पर प्रात:काल उठकर स्नान आदि के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
3.  संकल्प लेने के पश्चात घट स्थापना करनी चाहिए और कलश पर भगवान विष्णु की मूर्ति रखकर पूजा करनी चाहिए। इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए।
4.  व्रत के अगले दिन द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन और अन्न का दान करने के बाद व्रत खोलें।

पापाकुंशा एकादशी का महत्व

महाभारत काल में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को पापाकुंशा एकादशी का महत्व बताया। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि यह एकादशी पाप का निरोध करती है अर्थात पाप कर्मों से रक्षा करती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को अर्थ और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के संचित पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा तथा ब्राह्मणों को दान व दक्षिणा देना चाहिए। इस दिन सिर्फ फलाहार ही किया जाता है। इससे शरीर स्वस्थ व मन प्रफुल्लित रहता है।

पापाकुंशा एकादशी व्रत कथा

प्राचीनकाल में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक महाक्रूर बहेलिया रहता था। उसने अपनी सारी जिंदगी, हिंसा,लूट-पाट, मद्यपान और झूठे भाषणों में व्यतीत कर दी। जब उसके जीवन का अंतिम समय आया तब यमराज ने अपने दूतों को क्रोधन को लाने की आज्ञा दी। यमदूतों ने उसे बता दिया कि कल तेरा अंतिम दिन है।

मृत्यु भय से भयभीत वह बहेलिया महर्षि अंगिरा की शरण में उनके आश्रम पहुंचा। महर्षि ने दया दिखाकर उससे पापाकुंशा एकादशी का व्रत करने को कहा। इस प्रकार पापाकुंशा एकादशी का व्रत-पूजन करने से क्रूर बहेलिया को भगवान की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति हो गई।

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