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ख्रिसमस 2064, केव्हा आणि का साजरा केला जातो ख्रिसमस हा सण

2064 मध्ये में ख्रिसमस केव्हा आहे?

25

डिसेंबर, 2064

(गुरुवार)

नाताळ

Christmas New Delhi, India

हा येणारा ख्रिसमस सण तुम्हाला भरभराटीचा आणि यशाचा जावो आणि तुमच्या आयुष्यात आनंद घेऊन येवो ह्याच शुभेच्छा.

आइए जानते हैं कि 2064 में क्रिसमस कब है व क्रिसमस 2064 की तारीख व मुहूर्त।

क्रिसमस, ईसाई धर्म का महत्वपूर्ण पर्व है। इसे हर वर्ष 25 दिसंबर को मनाया जाता है। अपने आप में यह त्यौहार इतना व्यापक है कि दुनियाभर में इसे अन्य धर्म के लोग भी बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं। इसलिए इस पर्व को धार्मिक कहने की बजाय सामाजिक कहना ज्यादा बेहतर होगा। संयुक्त राष्ट्र संघ के आंकड़ों के अनुसार, विश्व के करीब डेढ़ सौ करोड़ लोग ईसाई धर्म के अनुयायी हैं। क्रिसमस को बड़ा दिन भी कहते हैं। इस त्यौहार की तैयारियाँ भी बड़ी धूमधाम के साथ होती हैं।

क्रिश्चियन यानी ईसाई धर्म की मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि इस दिन यीशु (ईसा मसीह) का जन्म हुआ था। ईसा मसीह ईसाईयों के ईश्वर हैं। इसलिए क्रिसमस डे पर गिरजाघरों यानी चर्च में प्रभु यीशु की जन्म गाथा की झांकियाँ प्रस्तुत की जाती हैं और गिरजाघरों में प्रार्थना की जाती है। इस दिन ईसाई धर्म के लोग चर्च में एकत्रित होकर प्रभु यीशु की आराधना करते हैं। लोग एक दूसरे को हैप्पी क्रिसमस और मेरी क्रिसमस की बधाईयाँ देते हैं।

क्रिसमस से जुड़ा इतिहास

क्रिसमस के इतिहास को लेकर इतिहास कारों में मतभेद है। कई इतिहास-कारों के अनुसार, यह त्यौहार यीशु के जन्म के पूर्व से ही मनाया जा रहा है। क्रिसमस पर्व रोमन त्यौहार सैंचुनेलिया का ही नया रूप है। मान्यताओं के अनुसार, सैंचुनेलिया रोमन देवता है। बाद में जब ईसाई धर्म की स्थापना हुई तो उसके बाद लोग यीशु को अपना ईश्वर मानकर सैंचुनेलिया पर्व को क्रिसमस डे के रूप में मनाने लगे।

25 दिसंबर को चुनने के पीछे का इतिहास

ज्ञात होता है कि सन 98 से लोग इस पर्व को निरंतर मना रहे हैं। बल्कि सन 137 में रोमन बिशप ने इस पर्व को मनाने की आधिकारिक रूप से घोषणा की थी। हालाँकि तब इसे मनाने का कोई निश्चित दिन नहीं था। इसलिए सन 350 में रोमन पादरी यूलियस ने 25 दिसंबर को क्रिसमस डे के रूप में घोषित कर दिया गया।

एक अन्य मान्यता के अनुसार, प्रारंभ में स्वयं धर्माधिकारी 25 दिसंबर को क्रिसमस को इस रूप में मनाने की मान्यता देने के लिए तैयार नहीं थे। यह वास्तव में रोमन जाति के एक त्योहार का दिन था, जिसमें सूर्य देवता की आराधना की जाती थी। यह माना जाता था कि इसी दिन सूर्य का जन्म हुआ। लेकिन जब ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ तो ऐसा कहा गया कि यीशु ही सूर्य देवता के अवतार हैं और फिर उनकी पूजा होने लगी। हालाँकि इसे मान्यता नहीं मिल पाई थी।

क्रिसमस पर्व को मनाने का सही ढंग

चूँकि क्रिसमस पर्व बड़ा पर्व है इसलिए इसकी तैयारियाँ भी बड़ी होती हैं। सेंटा, क्रिसमस ट्री, ग्रीटिंग्स कार्ड और बाँटे जाने वाले उपहार इस पर्व के मुख्य तत्व हैं। क्रिसमस का पर्व आते ही लोगों में इसे लेकर उत्साह बढ़ता देखा जाता है। लोग अपने मित्रों और परिजनों को कार्ड अथवा कोई सौगात देकर उन तक अपनी शुभकामनाएँ भेजते हैं। क्रिसमस कार्ड डे के रूप में कार्ड लेने और देने के इस प्रचलन के कारण हर साल नौ दिसंबर को मनाया जाता है।

हालाँकि अब तो डिजिटल युग है। इसलिए लोग क्रिसमस कार्ड की फोटो या इमेजेस ऑनलाइन भेजकर लोगों को इस पर्व की बधाई देते हैं। इस दिन लोग सोशल मीडिया में अपने क्रिसमस स्टेटस को दोस्तों और रिश्तेदारों से साझा करते हैं। लाइट्स और झालरों से सजे और टिम-टिमाते हुए गिरजाघरों में लोग यीशु की प्रार्थना करते हैं। कई जगह क्रिसमस के मौक़े पर झाकियाँ, जुलूस आदि भी निकाले जाते हैं।

●  क्रिसमट ट्री
क्रिसमस डे पर क्रिसमस ट्री का बडा़ महत्व है। यह डगलस, बालसम या फिर फर का वृक्ष होता है जिसे क्रिसमस डे पर अच्छी तरह से सजाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल में मिस्र वासियों, चीनियों और हिबूर लोगों ने सबसे पहले इस परंपरा की शुरुआत की थी। उनका विश्वास था की इन पौधों को घरों में सजाने से घर में नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं। हालाँकि आधुनिक क्रिसमस ट्री की शुरुआत जर्मनी में हुई थी। जहाँ इस पेड़ को स्वर्ग का प्रतीक माना गया है।

●  सेंटा क्लॉज
क्रिसमस के मौक़े पर बच्चे सेंटा क्लॉज का इंतज़ार करते हैं। क्योंकि सेंटा बच्चों को गिफ्ट्स देता है। ऐसी मान्यता है कि सेंटा क्लॉज की प्रथा संत निकोलस ने चौथी या पांचवी सदी में शुरू की। वे एशिया माइनर के पादरी थे। वे बच्चों और नाविकों से बेहद प्यार करते थे। दरअसल वे क्रिसमस और नववर्ष के दिन गरीब-अमीर सभी को प्रसन्न देखना चाहते थे। उनसे जुड़ी हुई कई कथाएँ और कहानियों सुनने को मिलती हैं।

ईसाई धर्म में किसमस त्यौहार का महत्व

ईसाई लोगों के लिए वास्तव में यह बड़ा त्यौहार है। इस दिन को वह अपने ईष्ट देवता यीशु के जन्म दिवस के रूप में मनाते हैं। इसलिए उनके लिए यह बहुत ही पावन दिन है। यीशु ईसाई धर्म के प्रवर्तक हैं। यीशु का जन्म हेरोदेस राजा के दिनों में हुआ था। क्योंकि हेरोदेस 4 ईसा पूर्व में मर गया था। इसलिए यह कहा जा सकता है कि उनका जन्म चौथी ईसा पूर्व में हुआ था। बाईबल जो कि ईसाई धर्म का पवित्र ग्रंथ है, इसमें उनके उपदेशों और उनकी जीवनी को विस्तार पूर्वक बताया गया है। क्रिसमस के 15 दिन पहले से ही क्रिश्चियन समाज के लोग इसकी तैयारियों में जुट जाते हैं।

क्रिसमस डे का संदेश

क्रिसमस का त्यौहार शांति और सदभावना का प्रतीक है। क्रिसमस शांति का भी संदेश देता है। चूँकि बाइबल में यीशु को शांति का दूत बताया गया है। वे हमेशा वक्तव्यों में कहते थे- शांति तुम्हारे साथ हो. शांति के बिना किसी भी धर्म का अस्तित्व संभव नहीं है। घृणा, संघर्ष, हिंसा एवं युद्ध आदि का धर्म के अंतर्गत कोई स्थान नहीं है।

भारत में क्रिसमस पर्व

यद्यपि भारत में ढाई फीसदी ईसाई लोग रहते हैं, लेकिन यहाँ इस पर्व को बड़ी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। खासकर गोवा में कुछ लोकप्रिय चर्च हैं, जहां क्रिसमस बहुत जोश और उत्‍साह के साथ मनाया जाता है। इनमें से अधिकांश चर्च भारत में ब्रि‍टिश और पुर्तगाली शासन के दौरान स्थापित किए गए थे। भारत के कुछ बड़े चर्चों मे सेंट जोसफ कैथेड्रिल, और आंध्र प्रदेश का मेढक चर्च, सेंट कै‍थेड्रल, चर्च आफ सेंट फ्रांसिस आफ आसीसि और गोवा का बैसिलिका व बोर्न जीसस, सेंट जांस चर्च इन विल्‍डरनेस आदि शामिल हैं।

हम आशा करते हैं कि क्रिसमस से संबंधित हमारा यह लेख आपको पसंद आया होगा। क्रिसमस डे की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ !

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