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2044 जेष्ठ अमावस्या

2044 मध्ये जेष्ठ अमावस्या कधी आहे?

27

मे, 2044

(शुक्रवार)

ज्येष्ठ अमावास्या

जेष्ठ अमावस्या मुहूर्त New Delhi, India

अमावस्या तिथी सुरवात 12:47:40 पासुन. मे 26, 2044 रोजी
अमावस्या तिथी समाप्ती 09:11:03 पर्यंत. मे 27, 2044 रोजी

हिन्दू धर्म में दान-पुण्य और पितरों की शांति के लिए किये जाने वाले पिंड दान व तर्पण के लिए अमावस्या को शुभ माना गया है। वहीं ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि जयंती भी मनाई जाती है, अतः इस कारण से ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन शनि देव के पूजन का विशेष विधान है। सूर्य पुत्र शनि देव हिन्दू ज्योतिष में नवग्रहों में से एक हैं। मंदगति से चलने की वजह से इन्हीं शनैश्चर भी कहा जाता है। शनि जयंती के साथ-साथ उत्तर भारत में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिये इस दिन वट सावित्री व्रत भी रखती हैं।

ज्येष्ठ अमावस्या व्रत और धार्मिक कर्म

ज्येष्ठ अमावस्या पर दान,धर्म, पिंडदान के साथ-साथ शनि देव का पूजन और वट सावित्री व्रत भी रखा जाता है। इस दिन होने वाले धार्मिक कर्मकांड इस प्रकार हैं-

●  इस दिन नदी, जलाशय या कुंड आदि में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देकर बहते जल में तिल प्रवाहित करना चाहिये।
●  पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करें और किसी गरीब व्यक्ति को दान-दक्षिणा दें।
●  शनि देव को कड़वा तेल, काले तिल, काले कपड़े और नीले पुष्प चढ़ाएँ। शनि चालीसा का जाप करें।
●  वट सावित्री का व्रत रखने वाली महिलाओं को इस दिन यम देवता की पूजा करनी चाहिए और यथाशक्ति दान-दक्षिणा देना चाहिए।


ज्येष्ठ अमावस्या और शनि जयंती का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि देव का जन्म हुआ था, इसलिए ज्येष्ठ अमावस्या का धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है। वैदिक ज्योतिष में शनि देव सेवा और कर्म के कारक हैं, अतः इस दिन उनकी कृपा पाने के लिए विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। शनि देव न्याय के देवता हैं उन्हें दण्डाधिकारी और कलियुग का न्यायाधीश कहा गया है। शनि शत्रु नहीं बल्कि संसार के सभी जीवों को उनके कर्मों का फल प्रदान करते हैं।

शनि जन्म कथा

शनि देव के जन्म से संबंधित एक पौराणिक कथा बहुत प्रचलित है। इस कथा के अनुसार शनि, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। सूर्य देव का विवाह संज्ञा से हुआ था और उन्हें मनु, यम और यमुना के रूप में तीन संतानों की प्राप्ति हुई। विवाह के बाद कुछ वर्षों तक संज्ञा सूर्य देव के साथ रहीं लेकिन अधिक समय तक सूर्य देव के तेज को सहन नहीं कर पाईं। इसलिए उन्होंने अपनी छाया को सूर्य देव की सेवा में छोड़ दिया और कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ। हालांकि सूर्य देव को जब यह पता चला कि छाया असल में संज्ञा नहीं है तो वे क्रोधित हो उठे और उन्होंने शनि देव को अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद से ही शनि और सूर्य पिता-पुत्र होने के बावजूद एक-दूसरे के प्रति बैर भाव रखने लगे।

वट सावित्री व्रत

यह सौभाग्यवती स्त्रियों का प्रमुख पर्व है, हालांकि इस व्रत को कुमारी और विधवा महिलाएँ भी कर सकती हैं। इस व्रत का पूजन ज्येष्ठ अमावस्या को किया जाता है। इस दिन महिलाएँ वट यानि बरगद के वृक्ष का पूजन होता है। यह व्रत स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगल कामना के साथ करती हैं। इस दिन सत्यवान-सावित्री की यमराज के साथ पूजा की जाती है।

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