दिनांक | आरंभ काल | समाप्ति काल |
---|---|---|
शुक्रवार, 28 जनवरी | 12:17:36 | 12:49:09 |
गुरुवार, 24 फरवरी | 18:55:11 | 19:51:20 |
बुधवार, 23 मार्च | 00:24:50 | 25:32:10 |
बुधवार, 20 अप्रैल | 06:36:31 | 07:24:16 |
मंगलवार, 17 मई | 14:39:14 | 14:46:47 |
सोमवार, 13 जून | 00:12:21 | 23:44:44 |
सोमवार, 11 जुलाई | 09:55:17 | 09:16:08 |
रविवार, 07 अगस्त | 18:25:31 | 18:00:42 |
शनिवार, 03 सितंबर | 01:06:21 | 25:07:55 |
शनिवार, 01 अक्टूबर | 06:35:18 | 06:50:40 |
शुक्रवार, 28 अक्टूबर | 12:34:36 | 12:31:09 |
गुरुवार, 24 नवंबर | 20:43:37 | 19:53:48 |
बुधवार, 21 दिसंबर | 07:06:35 | 29:34:34 |
पुष्य नक्षत्र कैलेंडर के द्वारा आप सुवर्णप्राशन के बारे में सही समय का अंदाजा लगा सकते हैं। पुष्य नक्षत्र में सुवर्णप्राशन एक अत्यंत शुभ प्रक्रिया है जोकि शिशु के शारीरिक विकास के लिए अति आवश्यक है क्योंकि सुवर्णप्राशन के द्वारा ही शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाता है। पुष्य नक्षत्र वैदिक ज्योतिष में सर्वाधिक शुभ नक्षत्र है और यही वजह है कि इस नक्षत्र को नक्षत्रों का राजा भी कहा जाता है। पुष्य नक्षत्र के स्वामी शनि देव होते हैं लेकिन देव गुरु बृहस्पति को इसका अधिष्ठाता देवता माना जाता है। जब चंद्रमा अपनी दैनिक गति से अपनी कर्क राशि में प्रवेश करते हैं तो कर्क राशि में 3 अंश 40 कला से 16 अंश 40 कला तक पुष्य नक्षत्र का विस्तार होता है। इस नक्षत्र को पोषण करने वाला माना जाता है और इस नक्षत्र में औषधि ग्रहण करना ईश्वर के वरदान सदृश्य है।
सुवर्णप्राशन हिंदू धर्म का एक प्रमुख संस्कार है जो कि आज के समय में और भी अधिक महत्वपूर्ण है। पुष्य नक्षत्र कैलेंडर के द्वारा सुवर्णप्राशन की सही तिथि को जाना जा सकता है। सुवर्णप्राशन में शिशुओं को शुद्ध स्वर्ण चटाया जाता है। यह शिशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। सुवर्णप्राशन संस्कार पुष्य नक्षत्र में किया जाना सर्वाधिक उपयुक्त होता है। यदि यह संस्कार गुरु पुष्य नक्षत्र या रवि पुष्य नक्षत्र में किया जाए तो और भी अधिक शुभ होता है।