अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त 05:40:51 ते 12:18:28
कालावधी : 6 तास 37 मिनिटे
चला जाणून घेऊया 2044 मध्ये अक्षय तृतीया केव्हा आहे व अक्षय तृतीया 2044 चे दिनांक व मुहूर्त.
वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया या आखा तीज कहते हैं। यह सनातन धर्मियों का प्रधान त्यौहार है। इस दिन दिए हुए दान और किये हुए स्नान, यज्ञ, जप आदि सभी कर्मों का फल अनन्त और अक्षय (जिसका क्षय या नाश न हो) होता है। इसलिए इस त्यौहार का नाम अक्षय तृतीया रखा गया है।1. वैशाख मास में शुक्लपक्ष की तृतीया अगर दिन के पूर्वाह्न (प्रथमार्ध) में हो तो उस दिन यह त्यौहार मनाया जाता है।
2. यदि तृतीया तिथि लगातार दो दिन पूर्वाह्न में रहे तो अगले दिन यह पर्व मनाया जाता है, हालाँकि कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि यह पर्व अगले दिन तभी मनाया जायेगा जब यह तिथि सूर्योदय से तीन मुहूर्त तक या इससे अधिक समय तक रहे।
3. तृतीया तिथि में यदि सोमवार या बुधवार के साथ रोहिणी नक्षत्र भी पड़ जाए तो बहुत श्रेष्ठ माना जाता है।
1. इस दिन व्रत करने वाले को चाहिए की वह सुबह स्नानादि से शुद्ध होकर पीले वस्त्र धारण करें।
2. अपने घर के मंदिर में विष्णु जी को गंगाजल से शुद्ध करके तुलसी, पीले फूलों की माला या पीले पुष्प अर्पित करें।
3. फिर धूप-अगरबत्ती, ज्योत जलाकर पीले आसन पर बैठकर विष्णु जी से सम्बंधित पाठ (विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु चालीसा) पढ़ने के बाद अंत में विष्णु जी की आरती पढ़ें।
4. साथ ही इस दिन विष्णु जी के नाम से गरीबों को खिलाना या दान देना अत्यंत पुण्य-फलदायी होता है।
नोट: अगर पूर्ण व्रत रखना संभव न हो तो पीला मीठा हलवा, केला, पीले मीठे चावल बनाकर खा सकते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन नर-नारायण, परशुराम व हयग्रीव अवतार हुए थे। इसलिए मान्यतानुसार कुछ लोग नर-नारायण, परशुराम व हयग्रीव जी के लिए जौ या गेहूँ का सत्तू, कोमल ककड़ी व भीगी चने की दाल भोग के रूप में अर्पित करते हैं।
हिन्दू पुराणों के अनुसार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से अक्षय तृतीया का महत्व जानने के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की थी। तब भगवान श्री कृष्ण ने उनको बताया कि यह परम पुण्यमयी तिथि है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम (यज्ञ), स्वाध्याय, पितृ-तर्पण, और दानादि करने वाला व्यक्ति अक्षय पुण्यफल का भागी होता है।
प्राचीन काल में एक गरीब, सदाचारी तथा देवताओं में श्रद्धा रखने वाला वैश्य रहता था। वह गरीब होने के कारण बड़ा व्याकुल रहता था। उसे किसी ने इस व्रत को करने की सलाह दी। उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान कर विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की व दान दिया। यही वैश्य अगले जन्म में कुशावती का राजा बना। अक्षय तृतीया को पूजा व दान के प्रभाव से वह बहुत धनी तथा प्रतापी बना। यह सब अक्षय तृतीया का ही पुण्य प्रभाव था।
1. अक्षय तृतीया का दिन साल के उन साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है जो सबसे शुभ माने जाते हैं। इस दिन अधिकांश शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
2. इस दिन गंगा स्नान करने का भी बड़ा भारी माहात्म्य बताया गया है। जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, वह निश्चय ही सारे पापों से मुक्त हो जाता है।
3. इस दिन पितृ श्राद्ध करने का भी विधान है। जौ, गेहूँ, चने, सत्तू, दही-चावल, दूध से बने पदार्थ आदि सामग्री का दान अपने पितरों (पूर्वजों) के नाम से करके किसी ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।
4. इस दिन किसी तीर्थ स्थान पर अपने पितरों के नाम से श्राद्ध व तर्पण करना बहुत शुभ होता है।
5. कुछ लोग यह भी मानते हैं कि सोना ख़रीदना इस दिन शुभ होता है।
6. इसी तिथि को परशुराम व हयग्रीव अवतार हुए थे।
7. त्रेतायुग का प्रांरभ भी इसी तिथि को हुआ था।
8. इस दिन श्री बद्रीनाथ जी के पट खुलते हैं।
इन्हीं सब कारणों से इस त्यौहार को बड़ा पवित्र और महान फल देने वाला बताया गया है। आशा करते हैं कि आप इस लेख के माध्यम से अक्षय तृतीया के त्यौहार का भरपूर आनंद ले पाएँगे। आपको अक्षय तृतीया की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।