दिनांक | त्यौहार |
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शुक्रवार, 14 जनवरी | मकर संक्रांति |
रविवार, 13 फरवरी | कुम्भ संक्रांति |
मंगलवार, 15 मार्च | मीन संक्रांति |
गुरुवार, 14 अप्रैल | मेष संक्रांति |
रविवार, 15 मई | वृष संक्रांति |
बुधवार, 15 जून | मिथुन संक्रांति |
शनिवार, 16 जुलाई | कर्क संक्रांति |
बुधवार, 17 अगस्त | सिंह संक्रांति |
शनिवार, 17 सितंबर | कन्या संक्रांति |
सोमवार, 17 अक्टूबर | तुला संक्रांति |
बुधवार, 16 नवंबर | वृश्चिक संक्रांति |
शुक्रवार, 16 दिसंबर | धनु संक्रांति |
सूर्य हर महीने अपना स्थान बदल कर एक राशि से दूसरे राशि में चला जाता है। सूर्य के हर महीने राशि परिवर्तन करने की प्रक्रिया को संक्रांति के नाम से जाना जाता है। हिन्दू धर्म में संक्रांति का समय बहुत पुण्यकारी माना गया है। संक्रांति के दिन पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि का काफ़ी महत्व है। इस वैदिक उत्सव को भारत के कई इलाकों में बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
भारत के कुछ राज्यों जैसे आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, केरल, गुजरात, तेलांगना, तमिलनाडु, पंजाब और महाराष्ट्र में संक्रांति के दिन को साल के आरम्भ के तौर पर माना जाता है। जबकि बंगाल और असम जैसे कुछ जगहों पर संक्रांति के दिन को साल की समाप्ति की तरह माना जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 12 राशियाँ होती हैं, जिन्हें मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन के नाम से जाना जाता है। जैसा कि हमने आपको बताया विभिन्न राशियों में सूर्य के प्रवेश को ही संक्रांति की संज्ञा दी गई है। सूर्य बारी-बारी से इन 12 राशियों से हो कर गुजरता है। वैसे तो सूर्य का इन सभी राशियों से होकर गुजरना शुभ माना जाता है लेकिन हिन्दू धर्म में कुछ राशियों में सूर्य के इस संक्रमण को बेहद खास मानते हैं। आइये जानते हैं कुछ महत्वपूर्ण संक्रांतियों के बारे में–
● मकर संक्रांति–संक्रांति करते समय जब सूर्य देवता मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इस दिन को मकर सक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख और लोकप्रिय पर्व है। इस त्यौहार को हर साल जनवरी के महीने में मनाया जाता है। कहीं-कहीं पर मकर संक्रांति को उत्तरायण भी कहते हैं, उत्तरायण मतलब जिस दिन सूर्य उत्तर की ओर से यात्रा शुरू करता है। मकर संक्रांति 14 जनवरी या कभी-कभी, 15 जनवरी को मनाते हैं।
● मेष संक्रांति–पारंपरिक हिंदू सौर कैलेंडर में इसे नए साल की शुरुआत के तौर पर माना जाता है। इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। यह आम तौर पर 14 या 15 अप्रैल को मनाई जाती है। इस दिन को भारत के कई राज्यों में त्योहार के रूप में मनाते हैं। जैसे पंजाब में बैसाखी, ओडिशा में पाना संक्रांति और एक दिन बाद मेष संक्रांति, बंगाल में पोहेला बोइशाख आदि जैसे प्रचलित नामों से।
● मिथुन संक्रांति–भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर प्रांतों में मिथुन संक्रांति को माता पृथ्वी के वार्षिक मासिक धर्म चरण के रूप में मनाया जाता है, जिसे राजा पारबा या अंबुबाची मेला के नाम से जानते हैं।
● धनु संक्रांति–इस संक्रांति को हेमंत ऋतु शुरू होने पर मनाया जाता है। दक्षिणी भूटान और नेपाल में इस दिन जंगली आलू जिसे तारुल के नाम से जाना जाता है, उसे खाने का रिवाज है। जिस दिन से ऋतु की शुरुआत होती है उसकी पहली तारीख को लोग इस संक्रांति को बड़े ही धूम-धाम से मनाते हैं।
● कर्क संक्रांति–प्रायः 16 जुलाई के आस-पास सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करने पर कर्क संक्रांति मनाई जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसे छह महीने के उत्तरायण काल का अंत माना जाता है। साथ ही इस दिन से दक्षिणायन की शुरुआत होती है, जो मकर संक्रांति में समाप्त होता है।
अगर देखा जाये तो संक्रांति का सम्बन्ध कृषि, प्रकृति और ऋतु परिवर्तन से भी है। सूर्य देव को प्रकृति के कारक के तौर पर जाना जाता है, इसीलिए संक्रांति के दिन इनकी पूजा की जाती है। शास्त्रों में सूर्य देवता को समस्त भौतिक और अभौतिक तत्वों की आत्मा माना गया है। ऋतु परिवर्तन और जलवायु में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव इनकी स्थिति के अनुसार होता है। न केवल ऋतु में बदलाव बल्कि धरती जो अन्न पैदा करती है और जिससे जीव समुदाय का भरण-पोषण होता है, यह सब सूर्य के कारण ही संपन्न हो पाता है।
संक्रांति के दिन पूजा-अर्चना करने के बाद गुड़ और तिल का प्रसाद बांटा जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं, संक्राति एक शुभ दिन होता है। पूर्णिमा, एकादशी आदि जैसे शुभ दिनों की तरह ही संक्रांति के दिन की भी बहुत मान्यता है। इसीलिए इस दिन कुछ लोग पूजा-पाठ आदि भी करते हैं। मत्स्यपुराण में संक्रांति के व्रत का वर्णन किया गया है।
जो भी व्यक्ति (नारी या पुरुष) संक्रांति पर व्रत रखना चाहता हो उसे एक दिन पहले केवल एक बार भोजन करना चाहिए। जिस दिन संक्रांति हो उस दिन प्रातः काल उठकर अपने दाँतो कोअच्छे से साफ़ करने के बाद स्नान करें। उपासक अपने स्न्नान के पानी में तिल अवश्य मिला लें। इस दिन दान-धर्म की बहुत मान्यता है इसीलिए स्नान के बाद ब्राह्मण को अनाज, फल आदि दान करना चाहिए। इसके बाद उसे बिना तेल का भोजन करना चाहिए और अपनी यथाशक्ति दूसरों को भी भोजन देना चाहिए।
संक्रांति, ग्रहण, पूर्णिमा और अमावस्या जैसे दिनों पर गंगा स्नान को महापुण्यदायक माना गया है। माना जाता है कि ऐसा करने पर व्यक्ति को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। देवीपुराण में यह कहा गया है- जो व्यक्ति संक्रांति के पावन दिन पर भी स्नान नहीं करता वह सात जन्मों तक बीमार और निर्धन रहता है।
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