रमज़ान 2025 की तारीख व मुहूर्त
2025 में रमजान कब है?
रमज़ान का पहला दिन :
शनिवार, मार्च 1, 2025
रमज़ान का आखरी दिन :
रविवार, मार्च 30, 2025
ईद :
सोमवार, मार्च 31, 2025
आइए जानते हैं कि 2025 में रमज़ान कब है व रमज़ान 2025 की तारीख व मुहूर्त।
इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग रमज़ान के महीने को पवित्र और पावन मानते हैं। रमज़ान के महीने में मुस्लिम धर्म के लोग खुदा की इबादत करते हैं और ख़ुशियाँ बांटते हैं। इस ख़ास मौके पर दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने का भी रिवाज है। रमज़ान या रमदान इस्लामिक कैलेंडर का नवां महीना है। इस महीने को मुस्लिम धर्म के लोग पवित्र और पावन मानते हैं। मुस्लिम धर्म के लोग इस महीने रोज़े रखते हैं। अल्लाह को शुक्रिया करते हुए इस महीने के अंत में शव्वाल (इस्लामिक कैलेंडर का दसवां महीना) की पहली तारीख को ईद-उल-फितर का त्यौहार मनाया जाता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो इस माह मुस्लिम समुदाय के लोग अपने धर्म में कही बातों पर चलने के लिए अपने अंदर की बुराईयों को मिटाने की कोशिश करते हैं।
रमज़ान का इतिहास
मुस्लिम धर्म में आस्था रखने वाले लोगों का मानना है कि मोहम्मद साहब को साल 610 में लेयलत उल-कद्र के मौके पर इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक कुरान शरीफ का ज्ञान प्राप्त हुआ था। तभी से रमजान को इस्लाम धर्म के पवित्र महीने के रुप में मनाया जाने लगा। इस महीने में मुस्लिम धर्म के अनुयायियों को कुछ विशेष सावधानियां रखने की सलाह दी जाती है। इस महीने में कुरान की पवित्र पुस्तक को पढ़ना बहुत शुभ माना जाता है और जो लोग पढ़ना नहीं जानते उन्हें इसे सुनने की सलाह दी जाती है। रमज़ान का महीना 29 या 30 दिन का होता है। मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए इस वक्त उपवास रखना आवश्यक माना जाता है। उपवास को अरबी भाषा में सौम कहा जाता है इसलिए इस महीने को अरबी में माह-ए-सियाम भी कहा जाता है। हालांकि भारतीय मुस्लिमों के द्वारा रमजान में रखे जाने वाले उपवास को रोज़ा कहा जाता है। इस महीने सूर्यास्त के बाद उपवास खोला जाता है जिसे इफ़्तारी कहा जाता है।
मुस्लिम समुदाय द्वारा रमज़ान के महीने को इस तरह मनाया जाता है
● रोज़ा
रोजे या अरबी में सोम का अर्थ है किसी काम या किसी वस्तु का रुक जाना लेकिन इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार इसका मतलब है, खुदा की इबादत के लिए खुद को समर्पित कर देना। रमजान के महीने मुस्लिम धर्म के अनुयायियों से उम्मीद की जाती है कि वो पूरी ईमानदारी के साथ रोज़ा रखेंगे। उपवास के रोज सूर्योदय से पहले कुछ खा लिया जाता है जिसे सहरी कहा जाता है और उसके बाद दिन भर कुछ भी नहीं खाया जाता। सूरज ढलने के बाद रोजा खोला जाता है जिसे इफ्तारी कहा जाता है।
● नमाज़
इस्लाम में स्त्री और पुरुष को नमाज़ पढ़ने का आदेश दिया गया है। इस्लाम के उदय से नमाज की प्रथा चली आ रही है। हर मुसलमान को दिन में पांच बार नमाज करना आवश्यक है और रमजान के महीन में ऐसा करना बहुत ही आवश्यक माना जाता है। पांच बार की इन नमाजों को अलग-अलग नाम से जाना जाता है। इनके बारे में नीचे बताया गया है।
1. नमाज़-ए-फ़जर (उषाकाल की नमाज) - मुस्लिम धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह पहली नमाज है। इस नमाज को प्रात: काल में सूर्य के उदित होने से पहले अता किया जाता है।2. नमाज़-ए-जुह्र (अवनतिकाल की नमाज) - यह दूसरी नमाज है जिसे सूर्य के ढलने से कुछ समय पूर्व अता किया जाता है।
3. नमाज़ -ए-अस्र (दिवसावसान की नमाज) - इस नमाज को सूर्य के अस्त होने के थोड़ी देर पहले अता करते हैं।
4. नमाज़-ए-मग़रिब (सायंकाल की नमाज)- इस नमाज को सूर्यास्त के तुरंत बाद अता करते हैं।
5. नमाज़-ए-इषा (रात्रि की नमाज)- यह अंतिम नमाज है जिसे सूर्यास्त के डेढ़ घंटे बाद अता करते हैं।
● जकात
इस्लाम धर्म में दान बड़ी अहमियत है। नमाज के बाद जकात को ही सबसे अहम माना जाता है। माना जाता है कि हर मुसलमान को अपने कमाये धन में से जकात की अदायगी करनी ज़रुरी है। इसे धार्मिक टैक्स के रुप में देखा जाता है।
रमजान से जुड़ी कुछ खास बातें
● इस महीने बड़े-बुजुर्गों द्वारा सीख दी जाती है कि अपनी ज़रूरतों को कम करना और दूसरों की ज़रूरतों को पूरा करने से गुनाह कम हो जाते हैं।
● ऐसा माना जाता है कि इस महीने रोजा करने वाले को जो इफ्तार कराता है या भोजन कराता है उसके सारे गुनाह माफ हो जाते हैं। मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार एक खजूर या पानी से भी इफ्तार कराया जा सकता है।
● इस महीने मुस्लिम धर्म के मानने वाले लोगों से उम्मीद की जाती है कि वो अपना जायजा करें और अपने अंदर बैठी बुराईयों को दूर करने की कोशिश करें।
● मुस्लिम लोगों को यह सीख दी जाती है कि अगर किसी को आपकी मदद की आवश्यकता हो तो आपको खुलकर ज़रूरतमंद की मदद करनी चाहिए। धन आदि से जुड़े मामलों में भी इस वक्त कंजूसी नहीं करनी चाहिए।
● रमजान को नेकियों का मौसम भी कहा जाता है। इस माह में मुस्लिम धर्म के लोग अल्लाह की इबादत में अपना ज्यादा समय बिताते हैं और अपने अंदर की बुराईयों को दूर करते हैं। इसके साथ ही ज़रूरतमंदों की मदद करना भी मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए इस दौरान अहम माना जाता है।
● मोहम्मद सल्ल ने कहा है कि जो शख्स रमजान के महीने में पूरी शिद्दत और ईमान से रोजे रखता है उसके सारे गुनाह माफ कर दिये जाते हैं। रोजे से हमें खुद पर काबू पाने की काबीलियत हासिल होती है।
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