2073 में पूर्णिमा कब है
New Delhi, India के लिए पूर्णिमा व्रत की तारीखें
दिनांक | त्यौहार |
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सोमवार, 23 जनवरी | पौष पूर्णिमा व्रत |
बुधवार, 22 फरवरी | माघ पूर्णिमा व्रत |
गुरुवार, 23 मार्च | फाल्गुन पूर्णिमा व्रत |
शनिवार, 22 अप्रैल | चैत्र पूर्णिमा व्रत |
रविवार, 21 मई | वैशाख पूर्णिमा व्रत |
सोमवार, 19 जून | ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत |
बुधवार, 19 जुलाई | आषाढ़ पूर्णिमा व्रत |
गुरुवार, 17 अगस्त | श्रावण पूर्णिमा व्रत |
शनिवार, 16 सितंबर | भाद्रपद पूर्णिमा व्रत |
रविवार, 15 अक्टूबर | अश्विन पूर्णिमा व्रत |
मंगलवार, 14 नवंबर | कार्तिक पूर्णिमा व्रत |
गुरुवार, 14 दिसंबर | मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत |
हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीने की शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन आकाश में चंद्रमा अपने पूर्ण रूप में होता है। पूर्णिमा का भारतीय लोगों के जीवन में अपना एक अलग ही महत्व होता है। हर महीने में आने वाली पूर्णिमा को कोई न कोई व्रत या त्यौहार ज़रूर मनाया जाता है।
पूर्णिमा हिंदू कैलेंडर की बहुत ही महत्वपूर्ण तिथि होती है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपने पूरे आकार में होता है। अलग-अलग जगहों पर पूर्णिमा को कई अलग तरह के नामों से जाना जाता है। कहीं इसे पौर्णिमी कहते हैं तो कहीं पूर्णमासी। हिन्दू धर्म में इस दिन दान, धर्म के साथ-साथ व्रत करने की भी मान्यता है। तीर्थ स्थल के दर्शन, स्नान और दान-धर्म के लिए कार्तिक, वैशाख और माघ महीने की पूर्णिमा को बहुत शुभ माना जाता है। पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा की पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म में विशेष महत्व होने की वजह से पूर्णिमा के दिन कई लोग भगवान सत्यनारायण की कथा और पूजा आदि भी रखते हैं। कहा जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को हर तरह के सुख और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। पूर्णिमा के दिन पूर्वजों को भी याद किए जाने का रिवाज है।
पूर्णिमा हर महीने में एक बार जरूर आती है इसीलिए देखा जाये तो साल के 12 महीने में कुल 12 पूर्णिमा होती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूर्णिमा को मानव के लिए बहुत लाभकारी माना गया है। दरअसल हिन्दू कैलेंडर में तिथियों का निर्धारण चन्द्रमा की गति को आधार बना कर किया गया है। जिस दिन चन्द्रमा अपने पूरे आकार में होता है उस दिन को पूर्णिमा कहते है और जिस दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता उस दिन को अमावस्या कहते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पूर्णिमा का महत्व
पूर्णिमा तिथि को ज्योतिष शास्त्र में भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। पूर्णिमा के दिन ही महान आत्माओं के जन्म उत्सव से लेकर बड़े-बड़े त्यौहार मनाए जाते हैं। यह तिथि हिन्दू धर्म में बहुत ज्यादा मायने रखती है। वैदिक ज्योतिष तथा प्राचीन शास्त्रों मत में चन्द्रमा को मन का कारक माना गया है। इसीलिए चन्द्रमा के अपने पूरे रूप में होने की वजह से उसका असर सीधे जातक के मन पर पड़ता है।
पूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्व
अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो चन्द्रमा पानी को अपनी और आकर्षित करता है और मानव शरीर के भीतर भी 70 प्रतिशत पानी होता है जिसकी वजह से पूर्णिमा वाले दिन व्यक्ति के स्वभाव में कुछ न कुछ परिवर्तन आता है। हिन्दू पंचांग में सभी पूर्णिमाओं का अपना अलग महत्व होता है। इसीलिए साल के 12 महीनों में हर पूर्णिमा पर कुछ खास और अलग अंदाज़ में कोई न कोई त्यौहार या अवसर मनाये जाते हैं।
इस दिन अनेक घरों में भगवान सत्यनारायण की पूजा और कथा करते हैं। पुराणों के अनुसार पूर्णिमा वाले दिन को कई सारे देवी-देवता मानव रूप में परिवर्तित हो गए थे। इस दिन को हम आसमान में पूरा चाँद देखते हैं जो कि रात के अंधकार को मिटाने का काम करती है।
भविष्य पुराण के अनुसार देखें तो पूर्णिमा के दिन किसी तीर्थ स्थान पर जा कर स्नान करने से सारे पाप मिट जाते हैं और यदि कोई तीर्थ-स्थल पर नहीं जा सकता तो उसे घर में ही नहाने के पानी में गंगाजल की कुछ बूंदे मिला सकता है। पूर्णिमा के दिन पितरों का तर्पण (जल दान) करना भी बेहद शुभ माना गया है।
पूर्णिमा पर होने वाली पूजा और व्रत की विधि
इस दिन प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करना चाहिए। अगर संभव हो तो अपने नहाने के पानी में गंगाजल मिला लें, ऐसा करने से आपको भूतकाल में किए गए सारे पापों से छुटकारा मिल जाता है। पूर्णिमा वाले दिन भगवान विष्णु और शिव की पूजा करने का विशेष विधान है। कई सारे श्रद्धालु बिना कुछ खाए-पिए उपवास रखते हैं। उपवास का समय सूर्योदय से शुरू होता है और चंद्र दर्शन के साथ समाप्त होता है। यदि कोई व्यक्ति पूरे विश्वास और श्रद्धा से इस व्रत को करता है तो वह इसी जन्म में मोक्ष प्राप्ति कर सकता है।
एस्ट्रोसेज पर आपको इस साल में आने वाली हर एक पूर्णिमा के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी है। यहाँ पूजन के सही समय से लेकर उस दिन के पूजा का महत्व और विधि के बारे में बताया गया है।