जनवरी 22, 2084 को 02:42:51 से पूर्णिमा आरम्भ
जनवरी 23, 2084 को 04:47:01 पर पूर्णिमा समाप्त
वैदिक ज्योतिष और हिन्दू धर्म से जुड़ी मान्यता के अनुसार पौष सूर्य देव का माह कहलाता है। इस मास में सूर्य देव की आराधना से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए पौष पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान और सूर्य देव को अर्घ्य देने की परंपरा है। चूंकि पौष का महीना सूर्य देव का माह है और पूर्णिमा चंद्रमा की तिथि है। अतः सूर्य और चंद्रमा का यह अद्भूत संगम पौष पूर्णिमा की तिथि को ही होता है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों के पूजन से मनोकामनाएं पूर्ण होती है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती है।
पौष पूर्णिमा पर स्नान, दान, जप और व्रत करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और मोक्ष मिलता है। इस दिन सूर्य देव की आराधना का विशेष महत्व है। पौष पूर्णिमा की व्रत और पूजा विधि इस प्रकार है:
1. पौष पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल स्नान से पहले व्रत का संकल्प लें।
2. पवित्र नदी या कुंड में स्नान करें और स्नान से पूर्व वरुण देव को प्रणाम करें।
3. स्नान के पश्चात सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए।
4. स्नान से निवृत्त होकर भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए और उन्हें नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।
5. किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा देनी चाहिए।
6. दान में तिल, गुड़, कंबल और ऊनी वस्त्र विशेष रूप से देने चाहिए।
पौष पूर्णिमा पर देश के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर स्नान और धार्मिक आयोजन होते हैं। पौष पूर्णिमा से तीर्थराज प्रयाग में माघ मेले का आयोजन शुरू होता है। इस धार्मिक उत्सव में स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। धार्मिक विद्वानों के अनुसार माघ माह के स्नान का संकल्प पौष पूर्णिमा पर लेना चाहिए।