पौर्णिमा तिथी सुरवात 01:35:36 पासुन. जून 3, 2042 रोजी
पौर्णिमा तिथी समाप्ती 02:19:33 पर्यंत. जून 4, 2042 रोजी
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन स्नान, ध्यान और पुण्य कर्म करने का विशेष महत्व है। चूंकि ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है इसलिये इसकी पूजा विधि इस प्रकार है-
● इस दिन सुहागिन स्त्रियों को वट वृक्ष की पूजा करनी चाहिए और कथा सुननी चाहिए।
● बांस की दो टोकरी लें, इनमें से एक टोकरी में सात प्रकार के अनाज को कपड़े से ढंक कर रखें।
● दूसरी टोकरी में माँ सावित्री की प्रतिमा रखें और साथ में धूप, दीप, अक्षत, कुमकुम, मौली आदि पूजा सामग्री भी रखनी चाहिए।
● माँ सावित्री की पूजा कर वट वृक्ष के सात चक्कर लगाते हुए मौली का धागा वट वृक्ष पर बांधें।
● इसके बाद किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को श्रद्धानुसार दान-दक्षिणा दें और प्रसाद के रूप में चने व गुड़ का वितरण करें।
हिन्दू धर्म में ज्येष्ठ पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन से श्रद्धालु गंगा जल लेकर अमरनाथ यात्रा के लिये निकलते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह हिन्दू वर्ष का तीसरा महीना होता है। इस समय में धरती पर प्रचंड गर्मी रहती है और कई नदी व तालाब सूखे जाते हैं या उनका जल स्तर कम हो जाता है। इसलिए इस महीने में जल का महत्व अन्य महीनों की तुलना में बढ़ जाता है। ज्येष्ठ माह में आने वाले कुछ पर्व जैसे- गंगा दशहरा, निर्जला एकादशी के माध्यम से हमें ऋषि-मुनियों ने संदेश दिया है कि जल के महत्व को पहचानें और इसका सदुपयोग करें।