चैत्र पूर्णिमा व्रत 2054

2054 में चैत्र पूर्णिमा कब है?

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अप्रैल, 2054 (बुधवार)

चैत्र पूर्णिमा व्रत मुहूर्त New Delhi, India के लिए

अप्रैल 21, 2054 को 11:19:36 से पूर्णिमा आरम्भ

अप्रैल 22, 2054 को 09:32:57 पर पूर्णिमा समाप्त

चैत्र मास में आने वाली पूर्णिमा को चैत्र पूर्णिमा कहा जाता है। चैत्र पूर्णिमा को चैती पूनम के नाम से भी जाना जाता है। चूंकि चैत्र मास हिन्दू वर्ष का प्रथम मास होता है इसलिए चैत्र पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान सत्य नारायण की पूजा कर उनकी कृपा पाने के लिये भी पूर्णिमा का उपवास रखते हैं। वहीं रात्रि के समय चंद्रमा की पूजा की जाती है। उत्तर भारत में चैत्र पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंती भी मनाई जाती है। चैत्र पूर्णिमा पर नदी, तीर्थ, सरोवर और पवित्र जलकुंड में स्नान और दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

चैत्र पूर्णिमा व्रत और पूजा विधि

चैत्र पूर्णिमा पर स्नान, दान, हवन, व्रत और जप किये जाते हैं। इस दिन भगवान सत्य नारायण का पूजन करें और गरीब व्यक्तियों को दान देना चाहिए। चैत्र पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है-

1.  चैत्र पूर्णिमा के दिन प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, जलाशय, कुआं या बावड़ी में स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए।
2.  स्नान के पश्चात व्रत का संकल्प लेकर भगवान सत्य नारायण की पूजा करनी चाहिए।
3.  रात्रि में विधि पूर्वक चंद्र देव का पूजन करने के बाद उन्हें जल अर्पण करना चाहिए।
4.  पूजन के बाद व्रती को कच्चे अन्न से भरा हुआ घड़ा किसी ज़रुरतमंद व्यक्ति को दान करना चाहिए।


चैत्र पूर्णिमा का महत्व

चैत्र पूर्णिमा को चैती पूनम भी कहा जाता है। इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में रास उत्सव रचाया था, जिसे महारास के नाम से जाना जाता है। इस महारास में हजारों गोपियों ने भाग लिया था और प्रत्येक गोपी के साथ भगवान श्रीकृष्ण रातभर नाचे थे। उन्होंने यह कार्य अपनी योगमाया के द्वारा किया था।

हनुमान जयंती

ऐसी मान्यता है कि चैत्र मास की पूर्णिमा को ही श्री राम भक्त हनुमान जी का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन विशेष रूप से उत्तर और मध्य भारत में हनुमान जयंती मनाई जाती है। हनुमान जयंती को लेकर कुछ मतभेद हैं। कुछ स्थानों पर हनुमान जयंती कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर मनाई जाती है, तो कुछ जगह चैत्र शुक्ल पूर्णिमा पर। हालांकि धार्मिक ग्रन्थों में दोनों ही तिथियों का जिक्र मिलता है लेकिन इनके कारणों में भिन्नता है, इसलिए पहला जन्मदिवस है और दूसरा विजय अभिनंदन महोत्सव है।

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