अश्विन पूर्णिमा व्रत 2086

2086 में अश्विन पूर्णिमा कब है?

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अक्टूबर, 2086 (मंगलवार)

अश्विन पूर्णिमा व्रत मुहूर्त New Delhi, India के लिए

अक्टूबर 21, 2086 को 19:16:54 से पूर्णिमा आरम्भ

अक्टूबर 22, 2086 को 15:28:19 पर पूर्णिमा समाप्त

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। यह रास पूर्णिमा के नाम से भी जानी जाती है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार पूरे वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं का होता है और इससे निकलने वाली किरणें अमृत समान मानी जाती है। उत्तर और मध्य भारत में शरद पूर्णिमा की रात्रि को दूध की खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखी जाती है। मान्यता है कि चंद्रमा की किरणें खीर में पड़ने से यह कई गुना गुणकारी और लाभकारी हो जाती है। इसे कोजागर व्रत माना गया है, साथ ही इसको कौमुदी व्रत भी कहते हैं।

आश्विन पूर्णिमा व्रत और पूजा विधि

शरद पूर्णिमा पर मंदिरों में विशेष सेवा-पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन होने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं-

●  प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लें और पवित्र नदी, जलाश्य या कुंड में स्नान करें।
●  आराध्य देव को सुंदर वस्त्र, आभूषण पहनाएँ। आवाहन, आसन, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी और दक्षिणा आदि अर्पित कर पूजन करें।
●  रात्रि के समय गाय के दूध से बनी खीर में घी और चीनी मिलाकर आधी रात के समय भगवान भोग लगाएँ।
●  रात्रि में चंद्रमा के आकाश के मध्य में स्थित होने पर चंद्र देव का पूजन करें तथा खीर का नेवैद्य अर्पण करें।
●  रात को खीर से भरा बर्तन चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें और सबको प्रसाद के रूप में वितरित करें।
●  पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुननी चाहिए। कथा से पूर्व एक लोटे में जल और गिलास में गेहूं, पत्ते के दोने में रोली व चावल रखकर कलश की वंदना करें और दक्षिणा चढ़ाएँ।
●  इस दिन भगवान शिव-पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा होती है।


शरद पूर्णिमा का महत्व

शरद पूर्णिमा से ही स्नान और व्रत प्रारंभ हो जाते हैं। माताएँ अपनी संतान की मंगल कामना के लिए देवी-देवताओं का पूजन करती हैं। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के बेहद करीब आ जाता है। शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ रहता है। इस समय में आकाश में न तो बादल होते हैं और नहीं धूल के गुबार। शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्र किरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है।

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