अक्टूबर 13, 2086 को 10:32:23 से षष्ठी आरम्भ
अक्टूबर 14, 2086 को 11:34:56 पर षष्ठी समाप्त
काल प्रारंभ की क्रिया प्रात: काल की जाती है। इस दौरान घट या कलश में जल भरकर देवी दुर्गा को समर्पित करते हुए इसकी स्थापना की जाती है। घट स्थापना के बाद महासप्तमी, महाअष्टमी और महानवमी तीनों दिन मां दुर्गा की विधिवत पूजा-आराधना का संकल्प लिया जाता है।
बोधन जिसे अकाल बोधन के नाम से भी जाना जाता है। बोधन की क्रिया शाम को संपन्न की जाती है। बोधन से तात्पर्य है नींद से जगाना। इस मौके पर मां दुर्गा को नींद से जगाया जाता है। दरअसल हिंदू मान्यता के अनुसार सभी देवी-देवता दक्षिणायान काल में निंद्रा में होते हैं। चूंकि दुर्गा पूजा उत्सव साल के मध्य में दक्षिणायान काल में आता है इसलिए देवी दुर्गा को बोधन के माध्यम से नींद से जगाया जाता है। बताया जाता है कि भगवान श्री राम ने सबसे पहले आराधना करके देवी दुर्गा को जगाया था और इसके बाद राक्षस राज रावण का वध किया था। चूंकि देवी दुर्गा को असमय नींद से जगाया जाता है इसलिए इस क्रिया को अकाल बोधन भी कहते हैं।
बोधन की परंपरा में किसी कलश या अन्य पात्र में जल भरकर उसे बिल्व वृक्ष के नीचे रखा जाता है। बिल्व पत्र का शिव पूजन में बड़ा महत्व होता है। बोधन की क्रिया में मां दुर्गा को निंद्रा से जगाने के लिए प्रार्थना की जाती है।
बोधन के बाद अधिवास और आमंत्रण की परंपरा निभाई जाती है। देवी दुर्गा की वंदना को आह्वान के तौर पर भी जाना जाता है। बिल्व निमंत्रण के बाद जब प्रतीकात्मक तौर पर देवी दुर्गा की स्थापना कर दी जाती है, तो इसे आह्वान कहा जाता है जिसे अधिवास के नाम से भी जाना जाता है।