चैत्र नवरात्र 2056

चैत्र नवरात्र तारीख New Delhi, India साठी.

नवरात्र दिवस 1 (प्रथम)

शुक्रवार, मार्च 17, 2056

नवरात्र दिवस 2 (द्वितीया)

शनिवार, मार्च 18, 2056

नवरात्र दिवस 3 (तृतीया)

रविवार, मार्च 19, 2056

नवरात्र दिवस 4 (चतुर्थी)

सोमवार, मार्च 20, 2056

नवरात्र दिवस 5 (पंचमी)

मंगळवार, मार्च 21, 2056

नवरात्र दिवस 6 (षष्ठी)

बुधवार, मार्च 22, 2056

नवरात्र दिवस 7 (सप्तमी)

गुरुवार, मार्च 23, 2056

नवरात्र दिवस 8 (अष्टमी)

शुक्रवार, मार्च 24, 2056

नवरात्र दिवस 9 (नवमी)

शनिवार, मार्च 25, 2056

नवरात्र दिवस 10 (दशमी)

रविवार, मार्च 26, 2056

चैत्र नवरात्रि हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक बेहद प्रमुख पर्व है। इसमें देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूप – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि की बहुत हीं भव्य तरीके से पूजा की जाती है।

नवरात्रि में माँ दुर्गा को खुश करने के लिए उनके नौ रूपों की पूजा-अर्चना और पाठ की जाती है। इस पाठ में देवी के नौ रूपों के अवतरित होने और उनके द्वारा दुष्टों के संहार का पूरा विवरण है। कहते है नवरात्रि में माता का पाठ करने से देवी भगवती की खास कृपा होती है। अगर देखा जाए तो एक साल में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर नवरात्र चार बार आते हैं लेकिन हिन्दू पंचांग के अनुसार नवरात्रि का त्योहार वर्षभर में दो बार मनाया जाता है। चैत्र माह में आने वाली नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि और शरद ऋतु में आने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है।

चैत्र नवरात्रि हिन्दू धर्म के धार्मिक पर्वों में से एक है, जिसे अधिकांश हिन्दू परिवार बड़ी ही श्रद्धा के साथ मनाते हैं। हिन्दू पंचांग कैलेंडर के अनुसार नए वर्ष के प्रारंभ से राम नवमी तक इस पर्व को मनाया जाता है। इस त्योहार को वसंत नवरात्र के नाम से भी जाना जाता है। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है और इसके बाद प्रतिदिन देवी के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है। घटस्थापना को कलश स्थापना भी कहते है।

क्यों करते हैं कलश स्थापना ?

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार किसी भी पूजा से पहले गणेशजी की आराधना करते हैं। हममें से अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि देवी दुर्गा की पूजा में कलश क्यों स्थापित करते हैं ? कलश स्थापना से संबन्धित हमारे पुराणों में एक मान्यता है, जिसमें कलश को भगवान विष्णु का रुप माना गया है। इसलिए लोग देवी की पूजा से पहले कलश का पूजन करते हैं। पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है और फिर पूजा में सभी देवी -देवताओं को आमंत्रित किया जाता है।

कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, आदि रखी जाती है। कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है और उसमें जौ बोये जाते हैं। जौ बोने की विधि धन-धान्य देने वाली देवी अन्नपूर्णा को खुश करने के लिए की जाती है। माँ दुर्गा की फोटो या मूर्ति को पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित करते है और माँ का श्रृंगार रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण और सुहाग से करते हैं। पूजा स्थल में एक अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए। कलश स्थापना करने के बाद, गणेश जी और मां दुर्गा की आरती करते है जिसके बाद नौ दिनों का व्रत शुरू हो जाता है।

माता में श्रद्धा और मनवांछित फल की प्राप्ति के लिए बहुत-से लोग पूरे नौ दिन तक उपवास भी रखते हैं। नवमी के दिन नौ कन्याओं को जिन्हें माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों के समान माना जाता है, श्रद्धा से भोजन कराई जाती है और दक्षिणा आदि दी जाती है। चैत्र नवरात्रि में लोग लगातार नौ दिनों तक देवी की पूजा और उपवास करते हैं और दसवें दिन कन्या पूजन करने के पश्चात् उपवास खोलते हैं।

देवी दुर्गा की पूजा गुप्त नवरात्रि में भी की जाती है, आषाढ़ और माघ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले इस नवरात्र को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। हालांकि अधिकांश लोगों को न तो इसकी जानकारी है और न ही वो गुप्त नवरात्र को मनाते लेकिन तंत्र साधना और वशीकरण आदि में विश्वास रखने या उसे इस्तेमाल करने वालों के लिए गुप्त नवरात्रि बहुत ज्यादा महत्व रखती है। तांत्रिक इस दौरान देवी मां को प्रसन्न करने के लिए उनकी साधना भी करते हैं।

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