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चैत्र नवरात्रि 2030

चैत्र नवरात्रि की तिथियाँ New Delhi, India के लिए

चैत्र नवरात्रि 2030 (Navratri 2030) सनातन धर्म के श्रद्धालुओं द्वारा मनाए जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। नवरात्रि शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई है, जिसका अर्थ है नौ रातें। कई राज्यों में नवरात्रि को गुड़ी पड़वा के नाम से भी जाना जाता है। भारत देश में यह पर्व हमेशा की तरह इस साल भी पूरी श्रद्धा और उमंग के साथ मनाया जाएगा। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र माह की पहली तिथि से नवरात्रि 2030 की शुरुआत होती है और इसी दिन से हिन्दू नववर्ष का भी आरंभ होता है। इस दिन से लोग लगातार 9 दिनों तक माँ दुर्गा के 9 स्वरूपों यानी कि शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, माँ कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा बड़े ही विधिविधान के साथ करते हैं। चैत्र नवरात्रि 2030 की प्रथम तिथि को कलश स्थापना की जाती है। उसके बाद 9 दिनों तक उस कलश का पूजन किया जाता है। नवरात्रि 2030 (Navratri 2030) की अष्टमी व नवमी को छोटी कन्याओं को माँ दुर्गा का स्वरूप मानते हुए कन्या भोज कराया जाता है और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

नवरात्रि दिन 1

प्रतिपदा

माँ शैलपुत्री पूजा

घटस्थापना

3

अप्रैल 2030

(बुधवार)

नवरात्रि दिन 2

द्वितीया

माँ ब्रह्मचारिणी पूजा

4

अप्रैल 2030

(गुरुवार)

नवरात्रि दिन 3

द्वितीया

माँ ब्रह्मचारिणी पूजा

5

अप्रैल 2030

(शुक्रवार)

नवरात्रि दिन 4

तृतीया

माँ चंद्रघंटा पूजा

6

अप्रैल 2030

(शनिवार)

नवरात्रि दिन 5

चतुर्थी

माँ कुष्मांडा पूजा

7

अप्रैल 2030

(रविवार)

नवरात्रि दिन 6

पंचमी

माँ स्कंदमाता पूजा

8

अप्रैल 2030

(सोमवार)

नवरात्रि दिन 7

षष्ठी

माँ कात्यायनी पूजा

9

अप्रैल 2030

(मंगलवार)

नवरात्रि दिन 8

सप्तमी

माँ कालरात्रि पूजा

10

अप्रैल 2030

(बुधवार)

नवरात्रि दिन 9

अष्टमी

माँ महागौरी

11

अप्रैल 2030

(गुरुवार)

नवरात्रि दिन 10

नवमी

माँ सिद्धिदात्री

रामनवमी

12

अप्रैल 2030

(शुक्रवार)

नवरात्रि दिन 11

दशमी

नवरात्रि पारणा

13

अप्रैल 2030

(शनिवार)

चैत्र नवरात्रि हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक बेहद प्रमुख पर्व है। इसमें देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूप – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि की बहुत हीं भव्य तरीके से पूजा की जाती है।

नवरात्रि में माँ दुर्गा को खुश करने के लिए उनके नौ रूपों की पूजा-अर्चना और पाठ की जाती है। इस पाठ में देवी के नौ रूपों के अवतरित होने और उनके द्वारा दुष्टों के संहार का पूरा विवरण है। कहते है नवरात्रि में माता का पाठ करने से देवी भगवती की खास कृपा होती है। अगर देखा जाए तो एक साल में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर नवरात्र चार बार आते हैं लेकिन हिन्दू पंचांग के अनुसार नवरात्रि का त्योहार वर्षभर में दो बार मनाया जाता है। चैत्र माह में आने वाली नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि और शरद ऋतु में आने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है।

चैत्र नवरात्रि हिन्दू धर्म के धार्मिक पर्वों में से एक है, जिसे अधिकांश हिन्दू परिवार बड़ी ही श्रद्धा के साथ मनाते हैं। हिन्दू पंचांग कैलेंडर के अनुसार नए वर्ष के प्रारंभ से राम नवमी तक इस पर्व को मनाया जाता है। इस त्योहार को वसंत नवरात्र के नाम से भी जाना जाता है। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है और इसके बाद प्रतिदिन देवी के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है। घटस्थापना को कलश स्थापना भी कहते है।

क्यों करते हैं कलश स्थापना ?

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार किसी भी पूजा से पहले गणेशजी की आराधना करते हैं। हममें से अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि देवी दुर्गा की पूजा में कलश क्यों स्थापित करते हैं ? कलश स्थापना से संबन्धित हमारे पुराणों में एक मान्यता है, जिसमें कलश को भगवान विष्णु का रुप माना गया है। इसलिए लोग देवी की पूजा से पहले कलश का पूजन करते हैं। पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है और फिर पूजा में सभी देवी -देवताओं को आमंत्रित किया जाता है।

कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, आदि रखी जाती है। कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है और उसमें जौ बोये जाते हैं। जौ बोने की विधि धन-धान्य देने वाली देवी अन्नपूर्णा को खुश करने के लिए की जाती है। माँ दुर्गा की फोटो या मूर्ति को पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित करते है और माँ का श्रृंगार रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण और सुहाग से करते हैं। पूजा स्थल में एक अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए। कलश स्थापना करने के बाद, गणेश जी और मां दुर्गा की आरती करते है जिसके बाद नौ दिनों का व्रत शुरू हो जाता है।

माता में श्रद्धा और मनवांछित फल की प्राप्ति के लिए बहुत-से लोग पूरे नौ दिन तक उपवास भी रखते हैं। नवमी के दिन नौ कन्याओं को जिन्हें माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों के समान माना जाता है, श्रद्धा से भोजन कराई जाती है और दक्षिणा आदि दी जाती है। चैत्र नवरात्रि में लोग लगातार नौ दिनों तक देवी की पूजा और उपवास करते हैं और दसवें दिन कन्या पूजन करने के पश्चात् उपवास खोलते हैं।

देवी दुर्गा की पूजा गुप्त नवरात्रि में भी की जाती है, आषाढ़ और माघ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले इस नवरात्र को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। हालांकि अधिकांश लोगों को न तो इसकी जानकारी है और न ही वो गुप्त नवरात्र को मनाते लेकिन तंत्र साधना और वशीकरण आदि में विश्वास रखने या उसे इस्तेमाल करने वालों के लिए गुप्त नवरात्रि बहुत ज्यादा महत्व रखती है। तांत्रिक इस दौरान देवी मां को प्रसन्न करने के लिए उनकी साधना भी करते हैं।

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