लोहड़ी 2044 की तारीख व मुहूर्त
2044 में लोहड़ी कब है?
14
जनवरी, 2044
(गुरुवार)
लोहड़ी New Delhi, India के लिए
आइए जानते हैं कि 2044 में लोहड़ी कब है व लोहड़ी 2044 की तारीख व मुहूर्त। लोह़ड़ी पर्व आनंद और खुशियों का प्रतीक है। यह त्यौहार शरद ऋतु के अंत में मनाया जाता है। इसके बाद से ही दिन बड़े होने लगते हैं। मूलरूप से यह पह पर्व सिखों द्वारा पंजाब, हरियाणा में मनाया जाता है, परंतु लोकप्रियता के चलते यह भारत में नहीं बल्कि विश्वभर में मनाया जाने वाला उत्सव है। इस दिन लोग एक-दूसरे को बड़े हर्षोल्लास पर्व की बधाई देते हैं।
लोहड़ी पर्व का मुख्य उद्देश्य
लोहड़ी पर्व को हिन्दू कैलेंडर विक्रम संवत् एवं मकर संक्रांति से जोड़ा गया है। पंजाब क्षेत्र में इस त्यौहार (माघी संग्रांद) को बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। विशेष रूप से शरद ऋतु के समापन पर इस त्यौहार को मनाने का प्रचलन है। साथ ही यह त्यौहार किसानों के लिए आर्थिक रूप से नूतन वर्ष माना जाता है।रीति-रिवाज
जैसा कि हमने बताया कि लोहड़ी पंजाब एवं हरियाणा राज्य का प्रसिद्ध त्यौहार है, लेकिन इसके बावदू भी इस पर्व की लोक्रप्रियता का दायरा इतना बड़ा है कि अब इसे देशभर में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। किसान वर्ग इस मौक़े पर अपने ईश्वर का आभार प्रकट करते हैं, ताकि उनकी फसल का अधिक मात्रा में उत्पादन हो।
● उत्सव के दौरान बच्चे घर-घर जाकर लोक गीत गाते हैं और लोगों द्वारा उन्हें मिष्ठान और पैसे (कभी-कभार) भी दिए जाते हैं
● ऐसा माना जाता है कि बच्चों को खाली हाथ लौटाना सही नहीं माना जाता है, इसलिए उन्हें इस दिन चीनी, गजक, गुड़, मूँगफली एवं मक्का आदि भी दिया जाता है जिसे लोहड़ी भी कहा जाता है।
● फिर लोग आग जलाकर लोहड़ी को सभी में वितरित करते हैं और साथ में संगीत आदि के साथ त्यौहार का लुत्फ़ उठाते हैं।
● रात में सरसों का साग और मक्के की रोटी के साथ खीर जैसे सांस्कृतिक भोजन को खाकर लोहड़ी की रात का आनंद लिया जाता है।
● पंजाब के कुछ भाग में इस दिन पतंगें भी उड़ाने का प्रचलन है।
लोहड़ी गीत एवं इसका महत्व
लोहड़ी में गीतों का बड़ा महत्व है। इससे लोगों के ज़ेहन में एक नई ऊर्जा एवं ख़ुशी की लहर दौड़ जाती है। इसके अलावा गीत के साथ नृत्य करके इस पर्व को मनाया जाता है। मूलरूप से इन सांस्कृतिक लोक गीतों में ख़ुशहाल फसलों आदि के बारे में वर्णन होता है। गीत के द्वारा पंजाबी योद्धा दुल्ला भाटी को भी याद किया जाता है। आग के आसपास लोग ढ़ोल की ताल पर गिद्दा एवं भांगड़ा करके इस त्यौहार का जश्न मनाते हैं।
दुल्ला भट्टी
कई वर्षों से लोग लोहड़ी पर्व को दूल्ला भट्टी नामक चरित्र से जोड़ते हैं। लोहड़ी के कई गीतों में इनके नाम का ज़िक्र आता है। कहते हैं कि मुगल राजा अकबर के काल में दुल्ला भट्टी नामक एक लुटेरा पंजाब में रहता था जो न केवल धनी लोगों को लूटता था, बल्कि वह उन ग़रीब पंजाबी लड़कियों को बचाता था जो बाज़ार में बल पूर्वक बेची जाती थीं, लिहाज़ा आज के दौर में लोग उसे पंजाब का रॉबिन हुड कहते हैं।
भारत के अन्य भाग में लोहड़ी
आंध्र प्रदेश में मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व भोगी मनाया जाता है। इस दिन लोग पुरानी चीज़ों को बदलते हैं। वहीं आग जलाने के लिए लकड़ी, पुराना फ़र्नीचर आदि का भी इस्तेमाल करते हैं। इसमें धातु की चीज़ों को दहन नहीं किया जाता है। रुद्र ज्ञान के अनुसार इस क्रिया के तहत लोग अपने सभी बुरे व्यसनों का त्याग करते हैं। इसे रुद्र गीता ज्ञान यज्ञ भी कहते हैं। यह आत्मा के बदलाव एवं उसके शुद्धिकरण का प्रतीक माना जाता है।