परिवर्तिनी एकादशी 2055 | पार्श्व एकादशी 2055 व्रत | Parivartini Ekadashi 2055 Vrat

2055 में परिवर्तिनी एकादशी कब है?

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सितंबर, 2055 (बुधवार)

परिवर्तिनी एकादशी व्रत मुहूर्त New Delhi, India के लिए

परिवर्तिनी एकादशी पारणा मुहूर्त : 07:25:34 से 08:31:50 तक 2, सितंबर को

अवधि : 1 घंटे 6 मिनट

हरि वासर समाप्त होने का समय : 07:25:34 पर 2, सितंबर को

परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। इसे भारत के कई क्षेत्रों में पार्श्व एकादशी के रूप में भी जाना जाता है। इस एकादशी पर श्री हरि शयन करते हुए करवट लेते हैं इसलिए इसे एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। इसे पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत में भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है और मनुष्य के समस्त पाप नष्ट होते हैं। यह देवी लक्ष्मी का आह्लादकारी व्रत है इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजन करना श्रेष्ठ माना गया है।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत (Parivartini Ekadashi Vrat) पूजा विधि

परिवर्तिनी एकादशी का व्रत और पूजन, जिसे पार्श्व एकादशी व्रत के नाम से भी जाना जाता है, ब्रह्मा, विष्णु समेत तीनों लोकों की पूजा के समान है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:

●  एकादशी का व्रत रखने वाले मनुष्य को व्रत से एक दिन पूर्व दशमी तिथि पर सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।
●  व्रत वाले दिन प्रात:काल उठकर भगवान का ध्यान करें और स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष घी का दीप जलाएं।
●  भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी, ऋतु फल और तिल का उपयोग करें। व्रत के दिन अन्न ग्रहण ना करें। शाम को पूजा के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं।
●  व्रत के दिन दूसरों की बुराई करने और झूठ बोलने से बचें। इसके अतिरिक्त तांबा, चावल और दही का दान करें।
●  एकादशी के अगले दिन द्वादशी को सूर्योदय के बाद पारण करें और जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन व दक्षिणा देकर व्रत खोलें।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत की कथा

महाभारत काल के समय पाण्डु पुत्र अर्जुन के आग्रह पर भगवान श्री कृष्ण ने परिवर्तिनी एकादशी के महत्व का वर्णन सुनाया। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि- हे अर्जुन! अब तुम समस्त पापों का नाश करने वाली परिवर्तिनी एकादशी की कथा का ध्यानपूर्वक श्रवण करो।त्रेतायुग में बलि नाम का असुर था लेकिन वह अत्यंत दानी,सत्यवादी और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था। वह सदैव यज्ञ, तप आदि किया करता था। अपनी भक्ति के प्रभाव से राजा बलि स्वर्ग में देवराज इन्द्र के स्थान पर राज्य करने लगा। देवराज इन्द्र और देवता गण इससे भयभीत होकर भगवान विष्णु के पास गये। देवताओं ने भगवान से रक्षा की प्रार्थना की। इसके बाद मैंने वामन रूप धारण किया और एक ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि पर विजय प्राप्त की।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- वामन रूप लेकर मैंने राजा बलि से याचना की- हे राजन! यदि तुम मुझे तीन पग भूमि दान करोगे, इससे तुम्हें तीन लोक के दान का फल प्राप्त होगा। राजा बलि ने मेरी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और भूमि दान करने के लिए तैयार हो गया। दान का संकल्प करते ही मैंने विराट रूप धारण करके एक पांव से पृथ्वी, दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग तथा पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया। अब तीसरे पांव के लिए राजा बलि के पास कुछ भी शेष नहीं था। इसलिए उन्होंने अपने सिर को आगे कर दिया और भगवान वामन ने तीसरा पैर उनके सिर पर रख दिया। राजा बलि की वचन प्रतिबद्धता से प्रसन्न होकर भगवान वामन ने उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया।

मैंने राजा बलि से कहा कि, मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूँगा।

परिवर्तिनी एकादशी के दिन मेरी एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है। इस एकादशी को विष्णु भगवान सोते हुए करवट बदलते हैं।

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