पापमोचनी एकादशी पारणा मुहूर्त : 06:03:57 से 08:35:43 तक 7, अप्रैल को
अवधि : 2 घंटे 31 मिनट
समस्त पापों को नष्ट करने वाली पापमोचनी एकादशी व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:
1. एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प करें।
2. इसके बाद भगवान विष्णु की षोडशोपचार विधि से पूजा करें और पूजन के उपरांत भगवान को धूप, दीप, चंदन और फल आदि अर्पित करके आरती करनी चाहिए।
3. इस दिन भिक्षुक, जरुरतमंद व्यक्ति व ब्राह्मणों को दान और भोजन अवश्य कराना चाहिए।
4. पापमोचनी एकादशी पर रात्रि में निराहार रहकर जागरण करना चाहिए और अगले दिन द्वादशी पर पारण के बाद व्रत खोलना चाहिए।
मान्यता है कि इस व्रत को करने से पापों का नाश होता है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुना पुण्य भी मिलता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार पुरातन काल में चैत्ररथ नामक एक बहुत सुंदर वन था। इस जंगल में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या करते थे। इसी वन में देवराज इंद्र गंधर्व कन्याओं, अप्सराओं और देवताओं के साथ विचरण करते थे। मेधावी ऋषि शिव भक्त और अप्सराएं शिवद्रोही कामदेव की अनुचरी थीं। एक समय कामदेव ने मेधावी ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए मंजू घोषा नामक अप्सरा को भेजा। उसने अपने नृत्य, गान और सौंदर्य से मेधावी मुनि का ध्यान भंग कर दिया। वहीं मुनि मेधावी भी मंजूघोषा पर मोहित हो गए। इसके बाद दोनों ने अनेक वर्ष साथ में व्यतीत किये। एक दिन जब मंजूघोषा ने जाने के लिए अनुमति मांगी तो मेधावी ऋषि को अपनी भूल और तपस्या भंग होने का आत्मज्ञान हुआ। इसके बाद क्रोधित होकर उन्होंने मंजूघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दिया। इसके बाद अप्सरा ने ऋषि के पैरों में गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा। मंजूघोषा के अनेकों बार विनती करने पर मेधावी ऋषि ने उसे पापमोचनी एकादशी का व्रत करने का उपाय बताया और कहा इस व्रत को करने से तुम्हारे पापों का नाश हो जाएगा व तुम पुन: अपने पूर्व रूप को प्राप्त करोगी। अप्सरा को मुक्ति का मार्ग बताकर मेधावी ऋषि अपने पिता के महर्षि च्यवन के पास पहुंचे। श्राप की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने कहा कि- ‘’पुत्र यह तुमने अच्छा नहीं किया, ऐसा कर तुमने भी पाप कमाया है, इसलिए तुम भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करो।‘’
इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करके अप्सरा मंजूघोषा ने श्राप से और मेधावी ऋषि ने पाप से मुक्ति पाई।