मोहिनी एकादशी उपवास सोडण्याची वेळ 13:39:23 ते 16:22:52 मे, 18
कालावधी : 2 तास 43 मिनिटे
हरी वासरा समाप्ती क्षण : 09:59:24 ला मे, 18
● एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें
● इसके पश्चात कलश स्थापना कर भगवान विष्णु की पूजा करें
● दिन में मोहिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करें अथवा सुनें
● रात्रि के समय श्री हरि का स्मरण करें और भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें
● द्वादशी के दिन एकादशी व्रत का पारण करें
● सर्वप्रथम भगवान की पूजा कर ब्राह्मण अथवा जरूरतमंद को भोजनादि कराएं और उन्हें दान दक्षिणा देें
● इसके पश्चात ही स्वयं भोजन ग्रहण करें
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन हुआ तो अमृत प्राप्ति के बाद देवताओं व असुरों में आपाधापी मच गई थी। ताकत के बल पर देवता असुरों को हरा नहीं सकते थे इसलिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर असुरों को अपने मोह माया के जाल में फांसकर सारा अमृत देवताओं को पिला दिया जिससे देवताओं ने अमरत्व प्राप्त किया। इस कारण इस एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा गया।
भद्रावती नामक सुंदर नगर में धनपाल नामक एक धनी व्यक्ति रहता था। वह स्वभाव से बड़ा ही दानपुण्य करने वाला व्यक्ति था। उसके पाँच पुत्रों में सबसे छोटे बेटे का नाम धृष्टबुद्धि था जो बुरे कर्मों में अपने पिता का धन लुटाता रहता था। एक दिन धनपाल ने उसकी बुरी आदतों से तंग आकर उसे घर से निकाल दिया। अब वह दिन-रात शोक में डूब कर इधर-उधर भटकने लगा। एक दिन किसी पुण्य के प्रभाव से महर्षि कौण्डिल्य के आश्रम पर जा पहुंचा। महर्षि गंगा में स्नान करके आए थे।
धृष्टबुद्धि शोक के भार से पीड़ित होकर कौण्डिल्य ऋषि के पास गया और हाथ जोड़कर बोला, ‘‘ऋषि ! मुझ पर दया करके कोई ऐसा उपाय बताएं जिसके पुण्य के प्रभाव से मैं अपने दुखों से मुक्त हो जाऊँ।’ तब कौण्डिल्य बोले, मोहिनी’ नाम से प्रसिद्ध एकादशी का व्रत करो। इस व्रत के पुण्य से कई जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। धृष्टबुद्घि ने ऋषि की बताई विधि के अनुसार व्रत किया। जिससे वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर श्री विष्णुधाम को चला गया।