अभ्यंग स्नान समय : 04:57:59 से 06:29:54 तक
अवधि : 1 घंटे 31 मिनट
दो विभिन्न परंपरा के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है।
1. कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन चंद्र उदय या अरुणोदय (सूर्य उदय से सामान्यत: 1 घंटे 36 मिनट पहले का समय) होने पर नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। हालांकि अरुणोदय पर चतुर्दशी मनाने का विधान सबसे ज्यादा प्रचलित है।
2. यदि दोनों दिन चतुर्दशी तिथि अरुणोदय अथवा चंद्र उदय का स्पर्श करती है तो नरक चतुर्दशी पहले दिन मनाने का विधान है। इसके अलावा अगर चतुर्दशी तिथि अरुणोदय या चंद्र उदय का स्पर्श नहीं करती है तो भी नरक चतुर्दशी पहले ही दिन मनानी चाहिए।
3. नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले चंद्र उदय या फिर अरुणोदय होने पर तेल अभ्यंग( मालिश) और यम तर्पण करने की परंपरा है।
1. नरक चतुर्दशी के दिन प्रात:काल सूर्य उदय से पहले स्नान करने का महत्व है। इस दौरान तिल के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए, उसके बाद अपामार्ग यानि चिरचिरा (औधषीय पौधा) को सिर के ऊपर से चारों ओर 3 बार घुमाए।
2. नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे का जल नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करने की परंपरा है। मान्यता है कि ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।
3. स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें। ऐसा करने से मनुष्य द्वारा वर्ष भर किए गए पापों का नाश हो जाता है।
4. इस दिन यमराज के निमित्त तेल का दीया घर के मुख्य द्वार से बाहर की ओर लगाएं।
5. नरक चतुर्दशी के दिन शाम के समय सभी देवताओं की पूजन के बाद तेल के दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों ओर, घर के बाहर व कार्य स्थल के प्रवेश द्वार पर रख दें। मान्यता है कि ऐसा करने से लक्ष्मी जी सदैव घर में निवास करती हैं।
6. नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहते हैं इसलिए रूप चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए ऐसा करने से सौंदर्य की प्राप्ति होती है।
7. इस दिन निशीथ काल (अर्धरात्रि का समय) में घर से बेकार के सामान फेंक देना चाहिए। इस परंपरा को दारिद्रय नि: सारण कहा जाता है। मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के अगले दिन दीपावली पर लक्ष्मी जी घर में प्रवेश करती है, इसलिए दरिद्रय यानि गंदगी को घर से निकाल देना चाहिए।
नरक चतुर्दशी के दिन दीप प्रज्ज्वलन का धार्मिक और पौराणिक महत्व है। इस दिन संध्या के समय दीये की रोशनी से अंधकार को प्रकाश पुंज से दूर कर दिया जाता है। इसी वजह से नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली भी कहते हैं। नरक चतुर्दशी के दिन दीये जलाने के संदर्भ में कई पौराणिक और लौकिक मान्यताएं हैं।
1. राक्षस नरकासुर का वध : पुरातन काल में नरकासुर नामक एक राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवता और साधु संतों को परेशान कर दिया था। नरकासुर का अत्याचार इतना बढ़ने लगा कि उसने देवता और संतों की 16 हज़ार स्त्रियों को बंधक बना लिया। नरकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर समस्त देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने सभी को नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया। नरकासुर को स्त्री के हाथों से मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी कैद से 16 हजार स्त्रियों को आजाद कराया। बाद में ये सभी स्त्री भगवान श्री कृष्ण की 16 हजार पट रानियां के नाम से जानी जाने लगी।
नरकासुर के वध के बाद लोगों ने कार्तिक मास की अमावस्या को अपने घरों में दीये जलाए और तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
2. दैत्यराज बलि की कथा : एक अन्य पौराणिक कथा में दैत्यराज बलि को भगवान श्री कृष्ण द्वारा मिले वरदान का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि के बीच दैत्यराज बलि के राज्य को 3 कदम में नाप दिया था। राजा बलि जो कि परम दानी थे, उन्होंने यह देखकर अपना समस्त राज्य भगवान वामन को दान कर दिया। इसके बाद भगवान वामन ने बलि से वरदान मांगने को कहा। दैत्यराज बलि ने कहा कि हे प्रभु, त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि में इन तीनों दिनों में हर वर्ष मेरा राज्य रहना चाहिए। इस दौरान जो मनुष्य में मेरे राज्य में दीपावली मनाए उसके घर में लक्ष्मी का वास हो और चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपों का दान करे, उनके सभी पितर नरक में ना रहें और ना उन्हें यमराज यातना ना दें।
राजा बलि की बात सुनकर भगवान वामन प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया। इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन शुरू हुआ।
धार्मिक और पौराणिक महत्व की वजह से हिंदू धर्म में नरक चतुर्दशी का बड़ा महत्व है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्यौहार है। दीपावली से दो दिन पूर्व धन तेरस, नरक चतुर्दशी या छोटी दीवापली और फिर दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज मनाई जाती है। नरक चतुर्दशी पर यमराज के निमित्त दीपदान और प्रार्थना करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।
नरक चतुर्दशी के दिन यमराज की पूजा की जाती है, जिससे व्यक्ति के जीवन से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। साथ ही इस दिन यमराज के समक्ष दीपक जलाने से नरक के भय से भी मुक्ति मिलती है।
नरक चतुर्दशी के दिन शाम के समय देवताओं की पूजा करने के बाद घर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ तेल का दिया जलाया जाता है। साथ ही इस दिन रूप और सौन्दर्य के लिए भगवान कृष्ण की पूजा का भी विधान बताया गया है।
नरक चतुर्दशी के दिन एक काम की मनाही होती है। इस दिन भूल से भी अपने घर को अकेला न छोड़ने की सलाह दी जाती है।
नरक चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा करनी चाहिए। इससे अकाल मृत्यु का भय दूर होता है और इस दिन भगवान कृष्ण की भी पूजा का विधान बताया गया है।
एस्ट्रोसेज की ओर से आप सभी को नरक चतुर्दशी का हार्दिक शुभकामनाएं !