लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त : 17:50:44 से 19:47:07 तक
अवधि : 1 घंटे 56 मिनट
प्रदोष काल :17:30:16 से 20:08:15 तक
वृषभ काल :17:50:44 से 19:47:07 तक
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त :23:38:54 से 24:31:33 तक
अवधि :0 घंटे 52 मिनट
महानिशीथ काल :23:38:54 से 24:31:33 तक
सिंह काल :24:23:04 से 26:40:40 तक
अपराह्न मुहूर्त्त (चल, लाभ):14:47:33 से 17:30:17 तक
सायंकाल मुहूर्त्त (शुभ, अमृत, चल):19:09:01 से 24:05:13 तक
रात्रि मुहूर्त्त (लाभ):27:22:42 से 29:01:26 तक
हिंदू धर्म के अलावा बौद्ध, जैन और सिख धर्म के अनुयायी भी दिवाली मनाते हैं। जैन धर्म में दिवाली को भगवान महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है। वहीं सिख समुदाय में इसे बंदी छोड़ दिवस के तौर पर मनाते हैं।
1. कार्तिक मास में अमावस्या के दिन प्रदोष काल होने पर दीपावली (महालक्ष्मी पूजन) मनाने का विधान है। यदि दो दिन तक अमावस्या तिथि प्रदोष काल का स्पर्श न करे तो दूसरे दिन दिवाली मनाने का विधान है। यह मत सबसे ज्यादा प्रचलित और मान्य है।
2. वहीं, एक अन्य मत के अनुसार, अगर दो दिन तक अमावस्या तिथि, प्रदोष काल में नहीं आती है, तो ऐसी स्थिति में पहले दिन दिवाली मनाई जानी चाहिए।
3. इसके अलावा यदि अमावस्या तिथि का विलोपन हो जाए, यानी कि अगर अमावस्या तिथि ही न पड़े और चतुर्दशी के बाद सीधे प्रतिपदा आरम्भ हो जाए, तो ऐसे में पहले दिन चतुर्दशी तिथि को ही दिवाली मनाने का विधान है।
दिवाली पर कब करें लक्ष्मी पूजा?
मुहूर्त का नाम | समय | विशेषता | महत्व |
---|---|---|---|
प्रदोष काल | सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त | लक्ष्मी पूजन का सबसे उत्तम समय | स्थिर लग्न होने से पूजा का विशेष महत्व |
महानिशीथ काल | मध्य रात्रि के समय आने वाला मुहूर्त | माता काली के पूजन का विधान | तांत्रिक पूजा के लिए शुभ समय |
1. देवी लक्ष्मी का पूजन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त) में किया जाना चाहिए। प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न में पूजन करना सर्वोत्तम माना गया है। इस दौरान जब वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशि लग्न में उदित हों तब माता लक्ष्मी का पूजन किया जाना चाहिए। क्योंकि ये चारों राशि स्थिर स्वभाव की होती हैं। मान्यता है कि अगर स्थिर लग्न के समय पूजा की जाये तो माता लक्ष्मी अंश रूप में घर में ठहर जाती है।
2. महानिशीथ काल के दौरान भी पूजन का महत्व है लेकिन यह समय तांत्रिक, पंडित और साधकों के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है। इस काल में मां काली की पूजा का विधान है। इसके अलावा वे लोग भी इस समय में पूजन कर सकते हैं, जो महानिशिथ काल के बारे में समझ रखते हों।
दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का विशेष विधान है। इस दिन संध्या और रात्रि के समय शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी, विघ्नहर्ता भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा और आराधना की जाती है। पुराणों के अनुसार कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक पर आती हैं और हर घर में विचरण करती हैं। इस दौरान जो घर हर प्रकार से स्वच्छ और प्रकाशवान हो, वहां वे अंश रूप में ठहर जाती हैं इसलिए दिवाली पर साफ-सफाई करके विधि विधान से पूजन करने से माता महालक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ कुबेर पूजा भी की जाती है। पूजन के दौरान इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
1. दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन से पहले घर की साफ-सफाई करें और पूरे घर में वातावरण की शुद्धि और पवित्रता के लिए गंगाजल का छिड़काव करें। साथ ही घर के द्वार पर रंगोली और दीयों की एक शृंखला बनाएं।
2. पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और लाल कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति रखें या दीवार पर लक्ष्मी जी का चित्र लगाएं। चौकी के पास जल से भरा एक कलश रखें।
3. माता लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति पर तिलक लगाएं और दीपक जलाकर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, हल्दी, अबीर-गुलाल आदि अर्पित करें और माता महालक्ष्मी की स्तुति करें।
4. इसके साथ देवी सरस्वती, मां काली, भगवान विष्णु और कुबेर देव की भी विधि विधान से पूजा करें।
5. महालक्ष्मी पूजन पूरे परिवार को एकत्रित होकर करना चाहिए।
6. महालक्ष्मी पूजन के बाद तिजोरी, बहीखाते और व्यापारिक उपकरण की पूजा करें।
7. पूजन के बाद श्रद्धा अनुसार ज़रुरतमंद लोगों को मिठाई और दक्षिणा दें।
1. कार्तिक अमावस्या यानि दीपावली के दिन प्रात:काल शरीर पर तेल की मालिश के बाद स्नान करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से धन की हानि नहीं होती है।
2. दिवाली के दिन वृद्धजन और बच्चों को छोड़कर् अन्य व्यक्तियों को भोजन नहीं करना चाहिए। शाम को महालक्ष्मी पूजन के बाद ही भोजन ग्रहण करें।
3. दीपावली पर पूर्वजों का पूजन करें और धूप व भोग अर्पित करें। प्रदोष काल के समय हाथ में उल्का धारण कर पितरों को मार्ग दिखाएं। यहां उल्का से तात्पर्य है कि दीपक जलाकर या अन्य माध्यम से अग्नि की रोशनी में पितरों को मार्ग दिखायें। ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4. दिवाली से पहले मध्य रात्रि को स्त्री-पुरुषों को गीत, भजन और घर में उत्सव मनाना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में व्याप्त दरिद्रता दूर होती है।
हिंदू धर्म में हर त्यौहार से कई धार्मिक मान्यता और कहानियां जुड़ी हुई हैं। दिवाली को लेकर भी दो अहम पौराणिक कथाएं प्रचलित है।
1. कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान श्री राम चंद्र जी चौदह वर्ष का वनवास काटकर और लंकापति रावण का नाश करके अयोध्या लौटे थे। इस दिन भगवान श्री राम चंद्र जी के अयोध्या आगमन की खुशी पर लोगों ने दीप जलाकर उत्सव मनाया था। तभी से दिवाली की शुरुआत हुई।
2. एक अन्य कथा के अनुसार नरकासुर नामक राक्षस ने अपनी असुर शक्तियों से देवता और साधु-संतों को परेशान कर दिया था। इस राक्षस ने साधु-संतों की 16 हजार स्त्रियों को बंदी बना लिया था। नरकासुर के बढ़ते अत्याचारों से परेशान देवता और साधु-संतों ने भगवान श्री कृष्ण से मदद की गुहार लगाई। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवता व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई, साथ ही 16 हजार स्त्रियों को कैद से मुक्त कराया। इसी खुशी में दूसरे दिन यानि कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीये जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
इसके अलावा दिवाली को लेकर और भी पौरणिक कथाएं सुनने को मिलती है।
1. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इंद्र ने स्वर्ग को सुरक्षित पाकर खुशी से दीपावली मनाई थी।
2. इसी दिन समुंद्र मंथन के दौरान क्षीरसागर से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं और उन्होंने भगवान विष्णु को पति के रूप में स्वीकार किया था।
हिंदू धर्म में हर त्यौहार का ज्योतिष महत्व होता है। माना जाता है कि विभिन्न पर्व और त्यौहारों पर ग्रहों की दिशा और विशेष योग मानव समुदाय के लिए शुभ फलदायी होते हैं। हिंदू समाज में दिवाली का समय किसी भी कार्य के शुभारंभ और किसी वस्तु की खरीदी के लिए बेहद शुभ माना जाता है। इस विचार के पीछे ज्योतिष महत्व है। दरअसल दीपावली के आसपास सूर्य और चंद्रमा तुला राशि में स्वाति नक्षत्र में स्थित होते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चंद्रमा की यह स्थिति शुभ और उत्तम फल देने वाली होती है। तुला एक संतुलित भाव रखने वाली राशि है। यह राशि न्याय और अपक्षपात का प्रतिनिधित्व करती है। तुला राशि के स्वामी शुक्र जो कि स्वयं सौहार्द, भाईचारे, आपसी सद्भाव और सम्मान के कारक हैं। इन गुणों की वजह से सूर्य और चंद्रमा दोनों का तुला राशि में स्थित होना एक सुखद व शुभ संयोग होता है।
दीपावली का आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों रूप से विशेष महत्व है। हिंदू दर्शन शास्त्र में दिवाली को आध्यात्मिक अंधकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव कहा गया है।
वर्ष 2072 में दीपावली पूजन 9 नवंबर के दिन किया जायेगा।
इस वर्ष दीपावली का त्यौहार नवंबर महीने में पड़ रहा है।
बिहार में दीपावली 9 नवंबर 2072 के दिन मनाई जाएगी।
दिवाली का त्यौहार प्रभु श्रीराम के 14 वर्षों बाद वनवास से अयोध्या लौटने की ख़ुशी में मनाया जाता है। लोग अपने घरों को दीयों और मोमबत्तियों से रौशन करते हैं और माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करते हैं।
दिवाली के दिन दीपक जलाये जाते हैं, घरों और मंदिरों में झालर लगायी जाती है, लोग माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करते हैं, दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने जाते हैं और एक दूसरे को तोहफे देते हैं।
दीपावली का प्राचीन नाम दीपोत्सव है। अर्थात दीपों का उत्सव।
दिवाली हिन्दू धर्म का सबसे प्रमुख त्यौहार होता है। मुख्य रूप से यह त्यौहार अज्ञान पर ज्ञान, आध्यात्मिक अन्धकार पर आंतरिक प्रकाश, असत्य पर सत्य, और बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व माना गया है।
भगवान राम ने अपनी पहली दिवाली अपने जन्मस्थान अयोध्या में मनाई थी।
दीपावली पर हम अपने घरों को सजाते हैं, दिये जलाते हैं, दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलते हैं और उन्हें तोहफ़े देते हैं और तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाते और खाते हैं।
दिवाली के दिन तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान और मिष्ठान बनाये जाते हैं।
दीपावली के दिन माँ लक्ष्मी की पूजा करें, पूर्वजों की पूजा करें, घर की साफ़-सफाई का विशेष ध्यान रखें। इस दिन कोई भी गलत काम जैसे जुआ आदि खेलने से बचें, शराब और तामसिक भोजन से परहेज करें।
दिवाली के दिन उल्लू, छिपकली, छछूंदर, बिल्ली का दिखना बेहद ही शुभ माना गया है। दिवाली की रात यदि किसी व्यक्ति को इनमें से कोई एक भी जानवर नज़र आ जाये तो यह व्यक्ति के भाग्योदय का संकेत होता है।
हम आशा करते हैं कि दिवाली का त्यौहार आपके लिए मंगलमय हो। माता लक्ष्मी की कृपा आप पर सदैव बनी रहे और आपके जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली आए।