बैसाखी 2026
2026 में बैसाखी व्रत कब है?
14
अप्रैल, 2026
(मंगलवार)
बैसाखी New Delhi, India के लिए
भारत में बैसाखी पर्व को सिख समुदाय नए साल के रूप में मनाते हैं। यह पर्व प्रत्येक साल हिन्दू कैलेंडर विक्रम संवत के प्रथम माह में पड़ता है। बैसाखी को फसलों का त्यौहार भी कहा जाता है। वैसे तो यह पर्व पूरे भारत वर्ष में मनाया जाता है, लेकिन पंजाब में यह प्रसिद्ध है। इसके अलावा बैसाखी के दिन ही सिखों के दसवें गुरू गुरु गोबिन्द सिंह ने सन् 1699 में पवित्र खालासा पंथ की स्थापना की थी।
बैसाखी मनाने की परंपरा
ऐसा कहा जाता है कि गुरु तेग बहादुर (सिखों के नवें गुरु) औरंगज़ेब से युद्ध करते हुए शहीद हो गये थे। तेग बहादुर उस समय मुगलों द्वारा हिन्दुओं पर किए जाने अत्याचार के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे। तब उनकी मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र गुरु गोबिन्द सिंह अगले गुरु हुए। सन् 1650 में पंजाब मुगल आतताइयों, अत्याचारियों और भ्रष्टाचारियों का दंश झेल रहा था, यहाँ समाज में लोगों के अधिकारों का हनन खुलेआम हो रहा था और न ही लोगों को कहीं न्याय की उम्मीद नज़र आ रही थी। ऐसी परिस्थितियों में गुरू गोबिन्द सिंह ने लोगों में अत्याचार के ख़िलाफ़ लड़ने, उनमें साहस भरने का बीडा़ उड़ाया। उन्होंने आनंदपुर में सिखों का संगठन बनाने के लिए लोगों का आवाह्न किया। और इसी सभा में उन्होंने तलवार उठाकर लोगों से पूछा कि वे कौन बहादुर योद्धा हैं जो बुराई के ख़िलाफ शहीद हो जाने के लिए तैयार हैं। तब उस सभा में से पाँच योद्धा निकलकर सामने आए और यही पंच प्यारे कहलाए जो खालसा पंथ का नाम दिया गया।
पाँच ‘क’
पाँच लोगों का समूह (पंच प्यारे) पाँच ‘क’ के भी प्रतीक माने जाते हैं जिनमें कंघा, केश, कड़ा, कच्छा और कृपाण हैं।
पंच प्यारे का नाम
1. भाई दया सिंह
2. भाई धर्म सिंह
3. भाई हिम्मत सिंह
4. भाई मुखाम सिंह
5. भाई साहेब सिंह
बैसाखी मनाने का ढंग
बैसाखी मुख्य रूप से या तो किसी गुरुद्वारे या फिर किसी खुले क्षेत्र में मनाई जाती है, जिसमें लोग भांगड़ा और गिद्दा डांस करते हैं। नीचे इस पर्व को मनाने के बारे में बताया गया है:
1. लोग तड़के सुबह उठकर गुरूद्वारे में जाकर प्रार्थना करते हैं।
2. गुरुद्वारे में गुरुग्रंथ साहिब जी के स्थान को जल और दूध से शुद्ध किया जाता है।
3. उसके बाद पवित्र किताब को ताज के साथ उसके स्थान पर रखा जाता है।
4. फिर किताब को पढ़ा जाता है और अनुयायी ध्यानपूर्वक गुरू की वाणी सुनते हैं।
5. इस दिन श्रद्धालुयों के लिए विशेष प्रकार का अमृत तैयार किया जाता है जो बाद में बाँटा जाता है।
6. परंपरा के अनुसार, अनुयायी एक पंक्ति में लगकर अमृत को पाँच बार ग्रहण करते हैं।
7. अपराह्न में अरदास के बाद प्रसाद को गुरू को चढ़ाकर अनुयायियों में वितरित की जाती है।
8. अंत में लोग लंगर चखते हैं।