रविवार | सोमवार | मंगलवार | बुधवार | गुरुवार | शुक्रवार | शनिवार |
---|---|---|---|---|---|---|
प्रतिपदा (शुक्ल) 1 30 17 |
द्वितीया (शुक्ल) 2,3 31 18 |
चतुर्थी (शुक्ल) 4 1 19 |
पंचमी (शुक्ल) 5 2 20 |
षष्ठी (शुक्ल) 6 3 21 |
सप्तमी (शुक्ल) 7 4 22 |
अष्टमी (शुक्ल) 8 5 23 |
नवमी (शुक्ल) 9 6 24 |
दशमी (शुक्ल) 10 7 25 |
एकादशी (शुक्ल) 11 8 26 |
द्वादशी (शुक्ल) 12 9 27 |
त्रयोदशी (शुक्ल) 13 10 28 |
चतुर्दशी (शुक्ल) 14 11 29 |
![]() 15 12 30 |
प्रतिपदा (कृष्ण) 1 13 31 |
प्रतिपदा (कृष्ण) 1 14 1 |
द्वितीया (कृष्ण) 2 15 2 |
तृतीया (कृष्ण) 3 16 3 |
चतुर्थी (कृष्ण) 4 17 4 |
पंचमी (कृष्ण) 5 18 5 |
षष्ठी (कृष्ण) 6 19 6 |
सप्तमी (कृष्ण) 7 20 7 |
अष्टमी (कृष्ण) 8 21 8 |
नवमी (कृष्ण) 9 22 9 |
दशमी (कृष्ण) 10 23 10 |
एकादशी (कृष्ण) 11 24 11 |
द्वादशी (कृष्ण) 12 25 12 |
त्रयोदशी (कृष्ण) 13,14 26 13 |
![]() 15 27 14 |
प्रतिपदा (शुक्ल) 1 28 15 |
द्वितीया (शुक्ल) 2 29 16 |
तृतीया (शुक्ल) 3 30 17 |
चतुर्थी (शुक्ल) 4 1 18 |
पंचमी (शुक्ल) 5 2 19 |
षष्ठी (शुक्ल) 6 3 20 |
नोट: (कृष्ण) - कृष्ण पक्ष तिथि, (शुक्ल) - शुक्ल पक्ष तिथि
लाल रंग में संख्या: तिथि
नीले रंग में संख्या: प्रविष्टा / गत्ते
मासिक पंचांग
मासिक पंचांग या पंचांग एक प्रकार का हिन्दू कैलेंडर है। जिसके द्वारा तिथि, नक्षत्र, लग्न, सूर्योदय-सूर्यास्त और चंद्रोदय-चंद्रास्त का समय, इसके अलावा और भी अन्य ज्योतिषीय गणनाओं के बारे में जानकारी होती है। दैनिक पंचांग में जहां एक दिन विशेष का पूरा विवरण होता है ठीक उसी प्रकार मासिक पंचांग में पूरे माह में आने वाले प्रत्येक दिन का विवरण मिलता है।
मासिक पंचांग की विशेषताएँ
मासिक पंचांग में मिलने वाली विभिन्न सामग्री हमारे दैनिक जीवन और धार्मिक कार्यों के उद्देश्य के लिए बेहद आवश्यक होती है।
तिथि-- हिन्दू धर्म में तिथि के बिना किसी भी त्यौहार और धार्मिक कार्य का निर्धारण नहीं किया जा सकता है। क्योंकि हिन्दू धर्म के सभी त्यौहार विशेष तिथि पर मनाये जाते हैं। पंचांग में तिथि के आरंभ और समाप्त होने का समय दर्शाया जाता है। इसकी मदद से पर्व और त्यौहार को मनाने का निर्णय लिया जाता है।
शुक्ल पक्ष/कृष्ण पक्ष- हिन्दू कैलेंडर में प्रत्येक माह को दो पक्षों कृष्ण और शुक्ल पक्ष में बांटा गया है। ये दोनों पक्ष 15-15 दिन के होते हैं। इनमें पूर्णिमा और अमावस्या के मध्य भाग को कृष्ण पक्ष कहा जाता है। हालांकि अधिकांश शुभ कार्य के शुभारंभ के लिए कृष्ण पक्ष को सही नहीं माना जाता है। क्योंकि इस अवधि में चंद्रमा की कलाएं घटती हैं और चंद्रमा कमजोर रहता है। वहीं अमावस्या और पूर्णिमा के मध्य भाग की अवधि को शुक्ल पक्ष कहा जाता है। अमावस्या के अगले दिन से शुक्ल पक्ष प्रारंभ होता है। इस समय में चंद्रमा बलशाली होकर अपने पूर्ण आकार में रहता है, इसलिए शुक्ल पक्ष को समस्त शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। मासिक पंचांग के माध्यम से कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में आने वाली तिथियों का पता लगाया जा सकता है।
नक्षत्र- तिथि की तरह मासिक पंचांग की मदद से नक्षत्र की स्थिति के बारे में भी पता लगाया जा सकता है। क्योंकि आकाश मंडल में नक्षत्रों की स्थिति में प्रतिदिन बदलाव होता है। विभिन्न मुहूर्तों का निर्धारण करने में नक्षत्रों का बड़ा महत्व है। क्योंकि प्रत्येक शुभ कार्य किसी विशेष नक्षत्र में करने से उत्तम फलों की प्राप्ति होती है।
प्रमुख व्रत और त्यौहार- हिन्दू धर्म में हर माह कई व्रत और पर्व मनाये जाते हैं। मासिक पंचांग में सिलसिलेवार तरीके से इन व्रत और त्यौहारों की जानकारी उपलब्ध होती है। इनमें एकादशी, प्रदोष, मासिक शिवरात्रि, संकष्टी चतुर्थी और सावन के सोमवार आदि व्रत प्रमुख हैं। इसके अलावा त्यौहारों में होली, दिवाली और रक्षाबंधन जैसे त्यौहारों की भी जानकारी उपलब्ध होती है।
पूर्णिमा/अमावस्या के दिन- वैदिक ज्योतिष और हिन्दू धर्म में पूर्णिमा और अमावस्या की तिथि का बड़ा महत्व होता है। पूर्णिमा की तिथि चंद्रमा को प्रिय होती है और इसके अगले दिन से कृष्ण पक्ष प्रारंभ होता है वहीं अमावस्या की तिथि पर पितरों का तर्पण किया जाता है और इसके अगले दिन से शुक्ल पक्ष प्रारंभ होता है। मासिक पंचांग के माध्यम से व्रत और अन्य धार्मिक अनुष्ठान के उद्देश्य से पूर्णिमा और अमावस्या की तिथि के बारे में जाना जा सकता है।
सूर्योदय-सूर्यास्त- वैदिक पंचांग के अनुसार दिन की लंबाई को सूर्य उदय से लेकर सूर्यास्त तक जाना जाता है। विभिन्न त्यौहारों और व्रतों के निर्धारण में सूर्य की स्थिति को अवश्य देखा जाता है। यदि कोई तिथि सूर्योदय का स्पर्श नहीं करती है तो उक्त त्यौहार नहीं मनाया जाता है। मासिक पंचांग में प्रतिदिन के सूर्योदय और सूर्यास्त का समय उपलब्ध होता है।
चंद्रोदय-चंद्रास्त- हिन्दू वैदिक ज्योतिष की गणना पूर्णतः चंद्रमा की गति पर आधारित होती है। इसलिए चंद्रोदय और चंद्रास्त का समय जन्म कुंडली, भविष्यफल और शुभ मुहूर्त आदि कार्यों की गणना करने के लिए अनिवार्य होता है।
अमान्त माह- हिन्दू कैलेंडर में चंद्र मास दो प्रकार के होते हैं। इनमें यदि चंद्र मास बिना चंद्रमा वाले दिन समाप्त होता है उसे अमान्त माह कहा जाता है। भारत के दक्षिणवर्ती राज्यों आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल आदि राज्य इस कैलेंडर का अनुसरण करते हैं।
पूर्णिमान्त माह- जब चंद्र मास पूरा चंद्रमा दिखाई देने वाले दिन समाप्त होता है, वह पूर्णिमान्त माह कहलाता है। मध्य और उत्तर भारत के राज्यों हरियाणा, यूपी, हिमाचल, पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि राज्यों में पूर्णिमान्त कैलेंडर को प्रयोग में लाया जाता है।
पंचांग के 5 अंग
हिन्दू धर्म में पंचांग का बड़ा महत्व है। पंचांग 5 तत्वों क्रमशः तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण से मिलकर बना है। पंचांग प्रमुख रूप से सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों की स्थिति को दर्शाता है, जिनका वैदिक ज्योतिष में बड़ा महत्व है।
● तिथि
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक माह में कुल 30 तिथियां होती हैं। इनमें से प्रथम 15 तिथियां कृष्ण पक्ष में आती हैं और बाकी 15 तिथियां शुक्ल पक्ष में आती हैं। जब चंद्रमा 12 डिग्री पूर्ण करता है तो एक तिथि पूरी होती है। तिथियां नंदा, भद्रा, रिक्ता, जया और पूर्णा के नाम से 5 खण्डों में विभाजित हैं।
● वार
वार यानि एक सूर्योदय से लेकर दूसरे सूर्योदय की अवधि एक दिन अर्थात् वार कहलाती है। वार सात प्रकार के होते हैं। रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार और शनिवार।
● योग
सूर्य और चंद्रमा के मध्य बनने वाली विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहते हैं। तकनीकी भाषा में यदि इसे समझा जाए तो सूर्य और चंद्रमा के भोगांश को जोड़कर 13 अंश 20 मिनट से भाग देने पर एक योग की अवधि प्राप्त होती है। योग कुल 27 प्रकार के होते हैं, जो क्रमशः इस प्रकार हैं विष्कुंभ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यातिपात, वरीयान, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल ब्रह्मा, इन्द्र और वैधृति।
● करण
करण यानि आधी तिथि, दरअसल एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में और एक उत्तरार्ध में। करण की संख्या कुल 11 होती है। इनमें बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्मतुघ्र। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं और भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गये हैं।
● नक्षत्र
आकाश में तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। वैदिक ज्योतिष में नक्षत्र को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है और इनकी संख्या 27 होती है। ये अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद और रेवती हैं।
मासिक पंचांग में संपूर्ण माह में आने वाली तिथि, वार, नक्षत्र, पक्ष और सूर्य-चंद्रमा आदि की स्थिति का बोध होता है अतः दैनिक और शुभ कार्यों व मुहूर्त के संदर्भ में मासिक पंचांग का बड़ा महत्व होता है।
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