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दो घटी मुहूर्त एक प्रकार का शुभ समय होता है, जिसकी समय अवधि 48 मिनट की होती है और इसमें सभी प्रकार के शुभ कार्य किये जा सकते हैं। जब किसी व्यक्ति के जीवन की शुरुआत होती है तो ये शुभ और अशुभ पलों को खुद में संग्रहित किए होता है जब तक उसके जीवन का अंत समय समीप नहीं आ जाता। जीवन और मृत्यु पर किसी का बस नहीं होता है। यह विधाता का एक खेल है जो हम सब के बस से बाहर है। वैदिक ज्योतिष में इन गतिविधियों की गति को मापने के लिए एक इकाई पेश की गई है, जिसे मुहूर्त या दो घटी कहा जाता है।
मुहूर्त विशेषतः शुभ और अशुभ पलों की स्थिति को भांपने का अध्ययन है। दो घटी को जानने से पहले आईये जानते है कि घटी क्या होता है ?
घटी क्या है?
पुराने समय में आकाश में सूर्य की स्थिति को देख कर समय को मापा जाता था। वैदिक ज्योतिषी में इसे एक सूर्य उदय से अगले सूर्य उदय तक चलने वाले एक सामान्य सौर दिन की तरह मानते हैं। लेकिन अगर आधुनिक युग में देखा जाए तो, एक दिन की अवधि अपनी धुरी पर पृथ्वी की गति पर निर्भर करती है और इसकी गणना घंटों, मिनट और सेकंड जैसे इकाइयों में की जाती है। दूसरी ओर, वैदिक ज्योतिष में समय को विभिन्न विभागों द्वारा मापा जाता है, जैसे घटी, पल, विपल, वालिप्टा, परा।
1 दिन या 24 घंटे = 60 घटियां या 1 घंटा = 2.5 घटियां
1 घटी = 60 पल, काला या विघटी
1 पल = 60 विपल
1 विपल= 60 वालिप्टा
1 वालिप्टा= 60 परा
1 परा= 60 ततपरा
दो घटी मुहूर्त क्या होता है ?
वास्तव में, दो घटी मुहूर्त एक क्षण है, जो आकाश में स्थित ग्रहों की स्थिति और उनका संयोजन निर्धारित करता है, इसके अलावा यदि इनमें शुभ-अशुभ पलों के होने का संकेत विद्यमान हो तो यह किसी व्यक्ति के जीवन में ज़रूर संपन्न होते हैं। दो घटी मुहूर्त के निर्धारण के बाद इस बात की भी संतुष्टि की जाती है कि वह जातक के लिए भाग्यशाली रहेगा या नहीं।
संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि दो घट्टी मुहूर्त उस समय का अध्ययन है जिसमें शुभ कार्य होते हैं। यह सौरमंडल में सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों की सापेक्ष गति पर आधारित है। सामान्य भाषा में कहें तो यह आमतौर पर किसी भी काम को आरम्भ करने के लिए अनुकूल समय होता है।
दो घटी मुहूर्त के नाम
वैदिक ज्योतिष में 30 अलग-अलग मुहूर्त की चर्चा की गयी है।
रुद्र, आहि, मित्र, पितृ, वसु, वाराह, विश्वदेवा, विधि, सतमुखी, पुरुहूत, वाहिनी, नक्तनकरा, वरुण, अर्यमा, भग, गिरीश, अजपाद, अहिर बुध्न्य, पुष्य, अश्विनी, यम, अग्नि, विधातॄ,क्ण्ड,अदिति, जीव, विष्णु, युमिगद्युति, ब्रह्म, समुद्रम
दो घट्टी मुहूर्त के चर (प्रभावित करने वाली वस्तुएँ)
सूर्य और चंद्रमा की सापेक्ष गति के आधार पर, मुहूर्त के निम्नलिखित चर हैं:
● अयन: यह एक वर्ष के दौरान आने वाला समय है जब सूर्य एक निश्चित दिशा में राशियों से हो कर गुजरता है।
● महीना: एक महीने में 30 दिन शामिल होते हैं।
● नक्षत्र: हिंदू वैदिक ज्योतिष में 27 नक्षत्र निर्धारित हैं, जो प्रत्येक राशि में 13 डिग्री 20 मिनट का होता है।
● तिथि: वैदिक ज्योतिष में 30 तिथियां परिभाषित की गयी हैं, पहले पंद्रह दिन शुक्ल पक्ष की हैं और बाकि के 15 दिन कृष्ण पक्ष के हैं।
● वार: वार एक दिन होता है जो एक सूर्योदयसूर्योदय से शुरू होता है और अगले सूर्योदय पर समाप्त होता है। वैदिक ज्योतिष में रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार के रूप में सात वार परिभाषित हैं।
● योग: यह सूर्य और चंद्रमा की स्थिति के कारण बनता है। ज्योतिष शास्त्र में 27 योग परिभाषित हैं।
● लग्न: कार्य की प्रकृति का सही पता करने के लिए महत्वपूर्ण होता है की आप उचित लग्न का चुनाव करें।
दिन के मुहूर्त के स्वामी
यदि हम एक दिन को 15 समान भागों में विभाजित करते हैं, तो हमें 15 दिन का मुहूर्त मिलता है और 15 रात का मुहूर्त। इन मुहूर्तों का स्वामित्व अलग-अलग नक्षत्रों को आवंटित की जाती है। निम्नलिखित तालिका में मुहूर्त और उसके स्वामी की व्याख्या की गयी है।
मुहूर्त | दिन के मुहूर्त का स्वामी | रात के मुहूर्त का स्वामी |
---|---|---|
1 | आर्द्रा | आर्द्रा |
2 | अश्लेषा | पूर्वा भाद्रपद |
3 | अनुराधा | उत्तरा भाद्रपद |
4 | मघा | रेवती |
5 | धनिष्ठा | अश्विनी |
6 | पूर्वषाढ़ा | भरणी |
7 | उत्तराषाढ़ा | कृत्तिका |
8 | अभिजीत | रोहिणी |
9 | रोहिणी | मृगशिरा |
10 | ज्येष्ठा | पुनर्वसु |
11 | विशाखा | पुष्य |
12 | मूल | श्रवण |
13 | शतभिषा | हस्त |
14 | उत्तरा फाल्गुनी | चित्रा |
15 | पूर्वा फाल्गुनी | स्वाति |
अशुभ घटी
किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले निम्नलिखित कुछ घटियां दी गयी हैं, जिन्हें नज़रअंदाज़ किया जाना चाहिए:
● रेवती, पुनर्वसु, कृत्तिका और मघा की 30 वीं से 34 वीं घटी
● अश्लेषा की 32 से 36 वीं घटी
● अश्विनी की 50 से 54 वीं घटी
● उत्तरा फाल्गुनी और शतभिषा की 18 से 22 वीं घटी
● पूर्वा फाल्गुनी, चित्रा, उत्तराषाढ़ा, पुष्य की 20 से 24 वीं घटी
● विशाखा, स्वाति, मृगशिरा , ज्येष्ठा की 14 से 18 वीं घटी
● आर्द्रा और हस्त की 21 से 25 वीं घटी
● भाद्रपद की 16 वीं से 20 वीं घटी
● उत्तरा भाद्रपद, पूर्वषाढ़ा और भरणी की 24 से 28 वीं घटी
● अनुराधा, ज्येष्ठा, श्रवण की 10 से 14 वीं घटी
● मूल की 56 से 60 वीं घटी
दो घटी मुहूर्त का प्रयोग
दो घटी या मुहूर्त को किसी भी अच्छे कार्य को शुरू करने से पहले शुभ माना जाता है। उदाहरण के लिए:
● संपत्ति खरीदने और बेचने के दौरान दो घटी का उपयोग किया जाता है।
● इसका इस्तेमाल वित्त से संबंधित किसी भी बड़े लेनदेन के दौरान करते हैं।
● इसका उपयोग शुभ कृत्यों को करने में किया जाता है।
● पहली बार नए कपड़ों को पहनने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
● इसका प्रयोग उपनयन या यग्नोपवित के शुभ समय की जांच करने के लिए भी किया जाता है।
● विवाह हेतु शुभ समय की भी हमें इसके द्वारा होती है।
● यह शिक्षा संबंधी मुहूर्त और व्यवसाय से संबंधित लंबी यात्रा के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
● दो घाटी मुहूर्त का प्रयोग घर के निर्माण या नए घर में प्रवेश करने के लिए भी कर सकते हैं।
इसी प्रकार, इसका उपयोग विभिन्न जरूरतों या कार्यों के आधार पर विभिन्न लोगों द्वारा किया जा सकता है।
इसलिए, दो घटी मुहूर्त एक प्रकार से विभिन्न रूपों में समय का अध्ययन है। एक सही घटी या मुहूर्त का चयन एक व्यक्ति के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है, क्योंकि प्राकृतिक बल और ब्रह्माण्ड की ऊर्जा आपके पक्ष में होने के कारण इस समय किसी भी नए काम को शुरू करना अच्छा माना जाता है।