मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत 2143
2143 में मार्गशीर्ष पूर्णिमा कब है?
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जनवरी, 2143
(मंगलवार)
1 जनवरी, 2143 के लिए मार्गशीर्ष पूर्णिमा का मुहूर्त New Delhi, India के लिए
जनवरी 1, 2143 को 01:05:17 से पूर्णिमा आरम्भ
जनवरी 1, 2143 को 22:05:25 पर पूर्णिमा समाप्त
22 दिसंबर, 2143 के लिए मार्गशीर्ष पूर्णिमा का मुहूर्त New Delhi, India के लिए
दिसंबर 21, 2143 को 10:20:19 से पूर्णिमा आरम्भ
दिसंबर 22, 2143 को 09:46:57 पर पूर्णिमा समाप्त
हिन्दू धर्म में मार्गशीर्ष के महीने को दान-धर्म और भक्ति का माह माना जाता है। श्रीमदभागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि महीनों में मैं मार्गशीर्ष का पवित्र महीना हूं। पौराणिक मान्याताओं के अनुसार मार्गशीर्ष माह से ही सतयुग काल आरंभ हुआ था। इस माह में आने वाली पूर्णिमा को मार्गशीर्ष पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन स्नान, दान और तप का विशेष महत्व बताया गया है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन हरिद्वार, बनारस, मथुरा और प्रयागराज आदि जगहों पर श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान और तप आदि करते हैं।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत और पूजा विधि
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन व्रत एवं पूजन करने सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है-
● इस दिन भगवान नारायण के पूजन का विधान है, इसलिए प्रातःकाल उठकर भगवान का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।
● स्नान के बाद सफेद कपड़े पहनें और फिर आचमन करें। इसके बाद ऊँ नमोः नारायण कहकर आह्वान करें तथा आसन, गंध और पुष्प आदि भगवान को अर्पण करें।
● पूजा स्थल पर वेदी बनाएँ और हवन के लिए उसमे अग्नि जलाएं। इसके बाद हवन में तेल, घी और बूरा आदि की आहुति दें।
● हवन की समाप्ति के बाद भगवान का ध्यान करते हुए उन्हें श्रद्धापूर्वक व्रत अर्पण करें।
● रात्रि को भगवान नारायण की मूर्ति के पास ही शयन करें।
● व्रत के दूसरे दिन जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराएँ और दान-दक्षिणा देकर उन्हें विदा करें।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
पौराणिक मान्यता है कि मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर तुलसी की जड़ की मिट्टी से पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करने से भगवान विष्ण की विशेष कृपा मिलती है। इस दिन किये जाने वाले दान का फल अन्य पूर्णिमा की तुलना में 32 गुना अधिक मिलता है, इसलिए इसे बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण की पूजा व कथा भी कही जाती है। यह परम फलदायी बताई गई है। कथा के बाद इस दिन सामर्थ्य के अनुसार गरीबों व ब्राह्मणों को भोजन और दान-दक्षिणा देने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं।