योगिनी एकादशी व्रत 2085
2085 में योगिनी एकादशी कब है?
18
जून, 2085
(सोमवार)
योगिनी एकादशी व्रत मुहूर्त New Delhi, India के लिए
योगिनी एकादशी पारणा मुहूर्त :
05:23:14 से 08:10:52 तक 19, जून को
अवधि :
2 घंटे 47 मिनट
योगिनी एकादशी के दिन भगवान श्री नारायण की पूजा-आराधना की जाती है। श्री नारायण भगवान विष्णु का ही नाम है। इस एकादशी का व्रत करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और पीपल के वृक्ष को काटने जैसे पाप तक से मुक्ति मिल जाती है। इस व्रत के प्रभाव से किसी के दिये हुए श्राप का निवारण भी हो जाता है। यह एकादशी देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुंदर रुप, गुण और यश देने वाली होती है।
योगिनी एकादशी व्रत पूजा विधि
यह एकादशी व्रत पुण्य फलदायी होता है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है:
1.इस व्रत के नियम एक दिन पूर्व शुरू हो जाते है। दशमी तिथि की रात्रि में ही व्यक्ति को जौं, गेहूं और मूंग की दाल से बना भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
2. वहीं व्रत वाले दिन नमक युक्त भोजन नहीं करना चाहिए, इसलिए दशमी तिथि की रात्रि में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
3. एकादशी तिथि के दिन प्रात: स्नान आदि कार्यो के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है।
4. इसके बाद कलश स्थापना की जाती है, कलश के ऊपर भगवान विष्णु की प्रतिमा रख कर पूजा की जाती है। व्रत की रात्रि में जागरण करना चाहिए।
5. यह व्रत दशमी तिथि की रात्रि से शुरू होकर द्वादशी तिथि के प्रात:काल में दान कार्यो के बाद समाप्त होता है।
योगिनी एकादशी का महत्व
योगिनी एकादशी का व्रत करने से जीवन में समृद्धि और आनन्द की प्राप्ति होती है। यह व्रत तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। मान्यता है कि योगिनी एकादशी का व्रत करने से 88 हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य मिलता है।
योगिनी एकादशी व्रत की कथा
प्राचीन काल में अलकापुरी नगर में राजा कुबेर के यहां हेम नामक एक माली रहता था। उसका कार्य रोजाना भगवान शंकर के पूजन के लिए मानसरोवर से फूल लाना था। एक दिन उसे अपनी पत्नी के साथ स्वछन्द विहार करने के लिए कारण फूल लाने में बहुत देर हो गई। वह दरबार में विलंब से पहुंचा। इस बात से क्रोधित होकर कुबेर ने उसे कोढ़ी होने का श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से हेम माली इधर-उधर भटकता रहा और एक दिन दैवयोग से मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि ने अपने योग बल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया। तब उन्होंने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने को कहा। व्रत के प्रभाव से हेम माली का कोढ़ समाप्त हो गया और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।