भाद्रपद अमावस्या 2125
2125 में भाद्रपद अमावस्या कब है?
28
अगस्त, 2125
(मंगलवार)
भाद्रपद अमावस्या मुहूर्त New Delhi, India के लिए
अगस्त 28, 2125 को 09:10:48 से अमावस्या आरम्भ
अगस्त 29, 2125 को 05:16:57 पर अमावस्या समाप्त
हिन्दू धर्म में अमावस्या की तिथि पितरों की आत्म शांति, दान-पुण्य और काल-सर्प दोष निवारण के लिए विशेष रूप से महत्व रखती है। चूंकि भाद्रपद माह भगवान श्री कृष्ण की भक्ति का महीना होता है इसलिए भाद्रपद अमावस्या का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस अमावस्या पर धार्मिक कार्यों के लिये कुशा एकत्रित की जाती है। कहा जाता है कि धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली घास यदि इस दिन एकत्रित की जाये तो वह पुण्य फलदायी होती है।
भाद्रपद्र अमावस्या व्रत और धार्मिक कर्म
स्नान, दान और तर्पण के लिए अमावस्या की तिथि का अधिक महत्व होता है। यदि अमावस्या सोमवार के दिन पड़ जाये और इस दिन सूर्य ग्रहण भी हो तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। भाद्रपद अमावस्या के दिन किये जाने वाले धार्मिक कार्य इस प्रकार हैं-
● इस दिन प्रातःकाल उठकर किसी नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद बहते जल में तिल प्रवाहित करें।
● नदी के तट पर पितरों की आत्म शांति के लिए पिंडदान करें और किसी गरीब व्यक्ति या ब्राह्मण को दान-दक्षिणा दें।
● इस दिन कालसर्प दोष निवारण के लिए पूजा-अर्चना भी की जा सकती है।
● अमावस्या के दिन शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसो के तेल का दीपक लगाएं और अपने पितरों को स्मरण करें। पीपल की सात परिक्रमा लगाएं।
● अमावस्या शनिदेव का दिन भी माना जाता है। इसलिए इस दिन उनकी पूजा करना जरूरी है।
भाद्रपद अमावस्या का महत्व
हर माह में आने वाली अमावस्या की तिथि का अपना विशेष महत्व होता है। भाद्रपद अमावस्या के दिन धार्मिक कार्यों के लिये कुशा एकत्रित की जाती है, इसलिए इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। वहीं पौराणिक ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है। यदि भाद्रपद अमावस्या सोमवार के दिन हो तो इस कुशा का उपयोग 12 सालों तक किया जा सकता है।
पिथौरा अमावस्या
भाद्रपद अमावस्या को पिथौरा अमावस्या भी कहा जाता है, इसलिए इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इस संदर्भ में पौराणिक मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था। विवाहित स्त्रियों द्वारा संतान प्राप्ति एवं अपनी संतान के कुशल मंगल के लिये उपवास किया जाता है और देवी दुर्गा की पूजा की जाती है।